एक-एक आंसू की कीमत देनी होगी दहशतगर्दों को |
रात लगभग 10.30 बजे का वक्त था। मैं कानपुर के जिस अखबार में काम करता था, उसके डाक संस्करण समय से छूट गए थे। प्रिंटिंग शुरू होने वाली थी। अपना पेज टाइम से छोड़ने के बाद मैं कुर्सी पर बैठा एक हाथ से एजेंसी का वायर चेक कर रहा था। अचानक एजेंसी का फ्लैश आया, फायरिंग आउटसाइड छत्रपति शिवाजी टर्मिनस इन मुंबई। मैंने इसे अंडरवर्ल्ड के लोगों की खुराफात मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया। 10 मिनट भी नहीं बीता कि एजेंसी ने तड़ातड़ मुंबई में कई जगहों पर फायरिंग, कई लोगों के मरने, ग्रेनेड चलने जैसे फ्लैश देने शुरू कर दिए। पहले पेज के लोग अपना टिफिन खोलने जा रहे थे लेकिन एजेंसी के फ्लैश देख सबने टिफिन बंद कर दिए। टीवी पर न्यूज़ चैनल लगाया गया तो सबकी आंखें फटी रह गईं। हमारी अपनी मुंबई में ताबड़तोड़ बम और गोलियां चल रही थीं। जंग का मैदान बन गई थी, सिटी ऑफ ड्रीम्स। मेरे ऑफिस में हर कोई टीवी के पास खड़ा हो गया। डाक संस्करणों की प्रिंटिंग रोक दी गई। मुंबई ब्यूरो और दिल्ली से पहली खबर आने का इंतजार जो था। ये काली रात 26 नवम्बर 2008 की थी।
तभी मेरा दिल-दिमाग पलभर के लिए बंद सा हो गया। शाम को ही तो पापा से बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि आज गेटवे ऑफ इंडिया और मरीन ड्राइव जाने का प्रोग्राम है, चाचाजी के साथ। पापा-मम्मी एक शादी में शामिल होने कानपुर से मुंबई गए थे। मैंने पॉकेट से अपना मोबाइल निकाला और पापा का नंबर मिलाने लगा। अरे...पापा का तो नंबर ही मुझे याद नहीं आ रहा। आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। क्या करूं? बड़ी मुश्किल से पापा का मोबाइल नंबर सर्च किया और डायल बटन दबाया। ये क्या....मोबाइल की घंटी बजी लेकिन फोन नहीं उठा। मैं पागल सा हो गया। तब तक टीवी और एजेंसी ने कन्फर्म कर दिया था कि मुंबई पर आतंकवादियों ने हमला किया है।
जो भी हो जीतती तो जिंदगी ही है |
अनहोनी की आशंका से दिल कांप उठा। मेरी आंखें भर आईं....होंठ थरथराने लगे। मन में सवाल, फोन क्यों नहीं उठा। हे भगवान...ये क्या हो रहा है? हमारी छोटी सी हैप्पी फैमिली! थोड़ी हिम्मत दिखाई और दोबारा पापा का मोबाइल नंबर डायल किया। कुछ सेकेंड तक घंटी बजी और फोन उठा। ये आवाज़ पापा की थी। मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया ! पापा से पूछा, आप कहां हो? कैसे हो और चोट तो नहीं लगी? मम्मी कहां हैं? मेरे नॉन स्टॉप सवालों से पापा सब कुछ समझ चुके थे। बोले, हम मरीन ड्राइव के पास थे, तभी अचानक ताबड़तोड़ गोलियां चलने लगीं। हम ठीक हैं। कोई चोट नहीं लगी। तुम्हारी मम्मी भी एकदम ठीक हैं। पापा को ये बोलते देख मम्मी ने तेज़ आवाज़ में कहा, हम ठीक हैं बेटा। सबका हाल जानने के बाद पापा ने हमें बताया कि मरीन ड्राइव के पास अचानक ज़बरदस्त फायरिंग की आवाज़ें आने लगीं। हाथों में मशीनगन लेकर मुंबई पुलिस आई और घूमते-फिरते लोगों को तुरंत वहां से अपने घरों को चले जाने को कहा। लोगों में हल्की भगदड़ सी मची लेकिन सब लोग डरे-सहमे अपने घर लौट गए। बेहद तेज़ कदमों से। मुंबई पुलिस के जवानों ने चारों तरफ से मोर्चा संभाल लिया था। ताकि मरीन ड्राइव पर मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। तसल्ली होने के बाद मैंने फोन काटा और अपने बड़े भाई को घर पर फोन मिलाया। मम्मी-पापा की सलामती की खबर सुनकर उनका गला भर गया। कुछ बोल ही नहीं पाए। हम सबने फिर से भगवान का शुक्रिया अदा किया।
इतनी शक्ति हमें देना दाता.... |
ये तो हमारी खुशकिस्मती थी कि सब ठीक था लेकिन 183 लोग इतने खुशकिस्मत नहीं थे। उनके परिवार उजड़ गए। बच्चे अनाथ हो गए। बूढ़े मां-बाप अकेले रह गए...जवान बेटा चला गया। बूढ़े पिता ने जवान बेटे की अर्थी को कंधा दिया। हम मुंबई हमले में मारे गए लोगों के दर्द को गहराई से समझ सकते हैं। कुछ दिन बाद कानपुर में मुंबई हमले से नाराज़ लोगों ने सड़क पर एक बड़ी सी होर्डिंग लगाई थी। उसमें मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था, राज ठाकरे गधा है...मुंबई के साथ पूरा भारत खड़ा है।
( लेखक प्रवीन मोहता आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं )
आपबीती सुनने पर रौंगटे खड़े हो जाते हैं..
ReplyDeleteसकुशल हैं, यह सुनकर तसल्ली उसे ही मिल सकती है, जिसपे बीतती है..
राज ठाकरे जैसे गधों के लिए मुंबई में तो क्या पूरे हिंदुस्तान में जगह नहीं होनी चाहिए..
हमलों के समय दुबक के बैठे थे और ऐसा मराठी-मराठी करते फिरते हैं..
आपकी इस पोस्ट का लिंक कल शुक्रवार को (२६--११-- २०१० ) चर्चा मंच पर भी है ...
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
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पढते पढते रौंगटे खडे हो गये और जिन लोगों पर गुजरी होगी उसकी तो कोई कल्पना भी नहीकर सकता…………
ReplyDeletecharchamanch.blogspot.com पर इस पोस्ट को जगह देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया. ऊपर जो लिखा, उसे लिखने के पहले हर बार मेरी आँखें नाम हो गयी. अंत में जय हिंद .... प्रवीन मोहता
ReplyDeleteझनझना दिया आपके शब्दों ने . .
ReplyDeleteफिर २६/११ जिंदा हो गया . . फिर वही रोशन रेली, हिन्दू मुसलमान सबके मिली आतंकवाद के खिलाफ वो आवाज़ .
जाने कहाँ आ गए हम !
आपकी यह पोस्ट पढ़ कर सच ही रोंगटे खड़े हो गए ...जिन पर गुज़री होगी उनके दर्द को महसूस कर रही हूँ ....कल बस चर्चा मंच लगाने की व्यस्तता की वजह से मैं अपने एहसास यहाँ दर्ज नहीं कर पायी ....ऐसे हादसों पर भी राजनीति होती है ...
ReplyDeleteआपका दर्द और दिल दहलाने वाला वाकया सोचने पे मजबूर करता है ... आतंक का कोई धर्म नहीं होता ...
ReplyDeleteदिल दहलाने वाले हादसे ....
ReplyDeleteये कब थमेंगे..?
आँखें नम हैं!
kafi gahara ghav hai ye 26/11 bharatiy itihas me...
ReplyDeleteओह..रोंगटे खड़ा कर देनेवाली कहानी....
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