Tuesday, November 9, 2010

कितना बदला है बिहार?

सत्यव्रत मिश्रा 
( लेखक आईआईएमसी, नयी दिल्ली के पूर्व छात्र और बिजनेस स्टैंडर्ड हिंदी में कार्यरत हैं )
बिहार के नाम से ही पहले कारोबारी और कारोबार, दोनों खार खाया करते थे। वजह भी काफी वाजिब थी। दरअसल, अपहरण एक उद्योग की शक्ल ले चुका था। साथ ही, वसूली या रंगदारी का कारोबार भी अपने शबाब पर हुआ करता था। मगर बीते पांच साल में काफी कुछ बदल चुका है। अपहरण उद्योग अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है और ज्यादातर रंगदार (वसूली करने वालों को बिहार में इसी नाम से जाना जाता है) या तो चिता की अग्नि में समा चुके हैं या फिर जेल में अपने दिन काट रहे हैं। हालांकि, अब भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। 

पटना में निर्माणाधीन अपार्टमेंट 
बीते पांच सालों में बिहार में कुछ क्षेत्रों में काफी तरक्की हुई है। अगर टेलीकॉम और निर्माण को लें तो आंकड़े देख कर कोई भी शख्स हैरान रह जाएगा। निर्माण क्षेत्र में बीते पांच सालों में करीब 35 फीसदी की रफ्तार से तरक्की हुई है, जबकि टेलीकॉम में 20 फीसदी की रफ्तार से इजाफा हुआ है। आज पटना में एक तरह से अपार्टमेंट क्रांति आ गई है। हर तरफ आपको गगनचुंबी अट्टालिकाएं ही दिखाई देंगी। यहां एक फ्लैट की कीमत चुकाने में अच्छे-अच्छों की जेब ढीली हो जाती है। बोरिंग रोड, फ्रेजर रोड और एक्जीबिशन रोड में फ्लैट्स की कीमत करोड़ों में पहुंच चुकी है। कदमकुंआ और कंकड़बाग कॉलोनी में भी एक फ्लैट के लिए आपकी जेब में कम से कम 50 लाख रुपये तो होने ही चाहिए। आलम यह है कि सीमेंट की खपत में प्रतिशत वृद्धि के मामले में बीते वित्त वर्ष में बिहार पहले नंबर पर रहा था।
एक गाँव की खस्ताहाल सड़क 
दूसरी तरफ, सूबे का टेलीकॉम उद्योग भी आस-पड़ोस के राज्यों के मुकाबले काफी तेजी से तरक्की कर रहा है। बिहार सर्किल में आज 13 टेलीकॉम कंपनियां कारोबार कर रही हैं। अकेले यह क्षेत्र बिहार में हजार करोड़ रुपये का निवेश लेकर आया है। इसके अलावा, होटल और रेस्त्रां कारोबार भी खूब चमक रहा है। साथ ही, सूबे में कारों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। अकेले इस धनतेरस पर सिर्फ पटना में 2,200 से ज्यादा कारों की बुकिंग हुई। दोपहिया वाहनों की बिक्री तो दसियों हजार में रही। साथ ही, लैपटॉप की बिक्री के मामले में बिहार काफी आगे रहा है। लेनेवो के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एलेक्स ली के मुताबिक बिहार में बीते कुछ सालों में उनके लैपटॉप्स की बिक्री भी काफी तेजी से बदली है।

तो आखिर क्या कारण है इस तेज विकास के ? एक कारोबारी ने बताया कि, ''दरअसल, कानून व्यवस्था सुधरने की वजह से हालात काफी हद तक बदले हैं। आज किसी को इस बात का डर नहीं है कि अगर उसने कार या फ्लैट खरीदा तो उसके पास रंगदारों के फोन आ जाएंगे। देखिए, बिहार में कभी पैसों की कमी नहीं रही है। कमी रही है तो उसे खर्च करने के मौकों की। बीते चार सालों में इनकम टैक्स बटोरने के मामले में पटना लगातार दिल्ली और मुंबई को पीछे छोड़ता आ रहा है।''

हालांकि, विकास की इस गाथा का एक दूसरा चेहरा भी है, जो काफी स्याह है। विकास की चमकीली गाथा काफी हद तक शहरों तक ही सीमित है। गांवों में आज भी इसकी दमक नहीं पहुंच पाई है। माना कि नीतीश सरकार ने काफी गांवों तक सड़कें पहुंचा दी हैं। लेकिन आज भी बिहार के अधिकतर गांव ऐसे हैं, जहां सड़कें नहीं पहुंच पाई हैं। साथ ही, बिजली की समस्या आज भी सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी हुई है। बिहार सरकार के 10 साल पुराने अनुमानों के मुताबिक बिहार को कम से कम 3,200 मेगावॉट बिजली की जरूरत है। माफ कीजिएगा नए आंकड़े नहीं दे पा रहा हूं क्योंकि ये आंकड़े खुद सरकार के पास भी नहीं है। हालांकि, आज भी बिहार को केंद्रीय कोटे से सिर्फ 1,100-1,200 मेगावॉट ही बिजली मिल पा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस समस्या को विकराल बनाने में केंद्र सरकार ने भी अच्छा खासा योगदान दिया। वह राज्य को उसके हक की बिजली भी नहीं दे रही है। साथ ही, कोल लिंकेज देने में भी बिहार के साथ भेदभाव किया गया। लेकिन इससे बिहार सरकार को अपने पापों से मुक्ति नहीं मिल सकती। दरअसल, बिजली घरों के लिए कोल लिंकेज की याद राज्य सरकार को 2008-09 में आई, जब कोयला खानों का वितरण हो चुका था। तो क्या चुने जाने के तीन साल बाद तक राज्य सरकार सो रही थी?
निर्माणाधीन बिजनेस सेण्टर 


इसके अलावा, बिहार में 90 फीसदी इलाका गांवों के तहत आता है, जहां लोगों की कमाई का मुख्य स्रोत खेती-बाड़ी है। राज्य सरकार के आर्थिक सर्वे की मानें तो कृषि क्षेत्र में विकास की दर नकारात्मक रही है। इसका मतलब यह हुआ कि असल में गांवों में लोगों की आय कम हुई है। साथ ही, विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) क्षेत्र में भी विकास भी ठहरा हुआ है। मतलब बिहार में ज्यादा उत्पादन भी नहीं हो रहा है। भ्रष्टाचार पर भी नीतीश सरकार लगाम कसने में नाकामयाब रही है। दरअसल, कई विश्लेषक के मुताबिक तो पटना के 50 फीसदी से ज्यादा फ्लैट्स पर सरकारी बाबुओं का कब्जा है। हालांकि, उनके पास इस बात को सच साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।


राज्य सरकार के अधिकारी भी दबी जुबान में इस बात को मानते हैं कि विकास के मामले में बिहार अब भी काफी पीछे है। दरअसल, बिहार के लिए विकास की सीढियां चढ़ना काफी मुश्किल होने वाला है। बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में आज जिस स्तर पर है, उसे शेष भारत सालों पहले पीछे छोड़ चुका है। साथ ही, बिहार में बड़े पैमाने पर निजी निवेश होने की संभावना भी न के बराबर है। दरअसल, यहां खनिज उत्पादों के नाम पर कुछ भी नहीं बचा है, ताकि बड़े कॉपोरेट घराने यहां का रुख करें। साथ ही, देश से बाहर रहने वाले बिहारी, गुजरातियों या पंजाबियों की तरह अमीर या रसूख वाले भी नहीं होते, जिससे उनके पैसों या रसूख की वजह से बिहार का विकास हो। मतलब अभी एक लंबे वक्त के लिए बिहार को विकास की खातिर सरकारी पैसों पर ही आश्रित रहना होगा।

हालांकि, मेरी अपनी आस्था यह है कि नीतीश कुमार के इस कार्यकाल को अपनी दो खूबियों के लिए सदा याद किया जाएगा। पहली खूबी यह कि इस सरकार के कार्यकाल में सूबे में सालों के बाद कानून का राज स्थापित हुआ। नीतीश कुमार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जितना किया है, वह वाकई काबिले तारीफ है। पंचायती चुनाव और जिला परिषदों के चुनाव में या फिर सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी के आरक्षण की वजह से सूबे में कई महिलाओं ने पहली बार अपनी आवाज पाई। साथ ही, साइकिल जैसे एक मामूली से माध्यम के जरिये स्कूलों में लड़कियों की तादाद में काफी इजाफा हुआ है। 

1 comment:

  1. सत्यव्रत काफी हद तक आपकी बातों से सहमत हूं, लेकिन विकास के नाम पर सिर्फ बिजली-पानी-सड़क या कानून व्यवस्था का नाम रटकर विकास की बात करना अधूरा है। बिहार में लोगों की मानसिकता को बदलना होगा। विकास की संकल्पना को एक परिधि में सिकोंड़कर रखना ज्यादती है। अगर विकास की बात करें तो आप देखें कि विकास के नाम पर जो भी हुआ है वह बाढ-बिहार शरीफ-नालंदा या पटना के इलाके में हुआ है। मिथिलांचल-तिरहुत विकास से कटा हुआ है।

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