मनोज मुकुल |
(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व छात्र हैं और 'स्टार न्यूज' में कार्यरत हैं)
बिहार में नीतीश कुमार का सहारा है विकास। नारा भी विकास ही है। चूंकि बिहार की राजनीति बिना जात-पात के संपूर्ण नहीं है लिहाजा नीतीश को ये जोड़-तोड़ करना पड़ रहा है। वैसे पार्टी नेता विकास के भरोसे आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। होना भी चाहिए क्योंकि इससे पहले के पंद्रह साल की तुलना में नीतीश का पांच साल कई गुणा भारी पड़ता है। नीतीश के नेता, कार्यकर्ताओं का सीना इसलिए भी फूला हुआ है कि फीड बैक विकास को लेकर सही आ रहा है। विरोधी भी विकास की दुहाई दे रहे हैं। हालांकि चुनाव है नतीजों का जोड़ घटाव तो वोट देने से पहले तक बदलता रहता है फिर भी आकलन जो कोई भी कर रहा है हवा नीतीश के पक्ष में बता रहा है।
बिहार के कुछ लोगों की बातों पर गौर करें तो, पिछली सरकार की तुलना में नीतीश की सरकार में किए गए कुछ काम बेहतर कहने लायक है। राजधानी पटना ही नहीं बिहार के ज्यादातर इलाकों में सड़कें चलने लायक हो गई हैं। कानून व्यवस्था के हालात भी बेहतर हुए हैं। शाम होते ही बाजारों की रौनक गायब हो जाती थी कम से कम इन पांच सालों में लोगों का मनोबल बढ़ा है। जिस तरीके से लालू-राबड़ी के राज में कानून तोड़ने वालों का मनोबल बढ़ा था कम से कम नीतीश के राज में कानून पर भरोसा करने वालों का मनोबल मजबूत हुआ है। पहले लोग दूसरों से तुलना करते थे अब लोग अपने में मस्त होने लगे है। विकासशील व्यवस्था की पहचान इसको मान सकते हैं। लिहाजा इस विकासशील व्यवस्था को विकसित बनाने के लिए जरूरी है कि बिहार को कम से कम पांच साल के लिए नीतीश पर भरोसा करना चाहिए। बिहार की एक पूरी पीढी ने कभी विकास नाम का शब्द बिहार की धरती पर नहीं सुना था। आज पहली बार उस पीढ़ी का नौजवान अपने घर में अपनों से विकास की बात सुन रहा है। बचपन उसका जंगल राज के साये में गुजरा था.. थोड़ा सयाना हुआ तो उसने विकास की परिभाषा को समझने की कोशिश की.. अब वो विकास की बात घर से लेकर बाहर तक सुन रहा है। मतलब नई पीढ़ी के जरिये बिहार के गांव और कस्बों में विकास लौट रहा है। आज राजनीति को समझने वाला हर शख्स देश की राजनीति को समझ रहा है उसमें अगर कोई दो पैसा भी बेहतर करता है तो दांव उसपर लगाने में कोई बुराई नही है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बहुत कुछ बदलाव हुआ है.. वैसे बिहार में बहुत चीजें ऐसी है जिसे करने की जरूरत है। नीतीश के समर्थक भी यही बात कह रहे हैं, पंद्रह साल या फिर उससे पहले के शासन में जो नहीं हुआ उसे अगर कोई करना चाहता है तो उसे मोहलत दी जानी चाहिए। कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि आज की तारीख में पहले की तुलना में शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, सड़क के मामले में बिहार ने तरक्की की है।
दिल्ली, नोएडा, मुंबई के बाद मीडिया के मामले में बिहार आज पावर सेंटर बनकर उभर रहा है। हालांकि इंडस्ट्री, बिजली, रोजगार के अवसर जैसे मामलों में बिहार को काम करने की जरूरत है। पहले के नेता इन मामलों के बारे में सोचते तक नहीं थे, आज अगर कोई सोच रहा है तो कम से कम उसे उसका ड्राफ्ट तैयार करने का वक्त मिलना चाहिए। भरोसा सबसे बड़ी चीज है अब तक बिहार को किसी पर भरोसा नहीं था लेकिन आज बिहार किसी की तरफ मुंह उठाकर देख तो रहा है। लिहाजा जाति, धर्म से उपर उठकर इस बार बिहार में विकास के इसी हथियार को चुनावी हथियार बनाने की तैयारी कर रहे हैं नीतीश कुमार। और हां बिहार का हर शख्स अपना एक राजनीतिक नजरिया रखता है इसलिए उसे पाठ पढ़ाना आसान नहीं होता। अब सवाल उठता है कि बिहार का वो नजरिया 15 साल तक कहां था। इसका जवाब आप इस रूप में समझ सकते हैं कि बिहार को तब यही पसंद था। जिस लालू को जमाने में बिहार के सभी धर्म, जाति, संप्रदाय के लोगों ने 1990 में मदद की थी उन्हीं लोगों ने 2005 में लालू को उखाड़ दिया। लालू को उखाड़ने के लिए बिहार में किसी को बाहर से नहीं बुलाना पड़ा। लालू के साथी रहे लोगों ने ही उन्हें धरातल का रास्ता दिखाया था। अब चूंकि नीतीश के राज में लालू-राबड़ी राज की तरह कोई बड़ी शिकायत नहीं मिली है कि इसे धरातल का रास्ता अभी ही दिखा दिया जाए। अभी तो बिहार के पुनर्निर्माण की शुरुआत है। लिहाजा बिहार के हर धर्म, जाति, संप्रदाय. बड़े, छोटे लोगों को बिहार के विकास में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करने का वक्त आया है। उम्मीद है इस बार अपने बिहार को और बेहतर बनाने के लिए बिहार बेहतर फैसला करेगा। आदमी उम्मीद किससे करता है, उसी से जो उसकी उम्मीदों पर खड़ा उतरता है।
पहले के लोग उम्मीद नहीं करते थे, अब किसी ने उम्मीद करना सिखाया तो लोग उम्मीद करने लगे हैं। शायद यही वजह है कि लोग नीतीश कुमार से और ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं...जिन उम्मीदों पर नीतीश की सरकार खड़ी नहीं उतरी उसी को भुनाने में लगे हैं सरकार के विरोधी। उपर ही मैंने जिक्र किया कि बहुत कुछ करने की जरूरत है सो एक बार उसी उम्मीद के भरोसे बिहार का बेहतर भविष्य चुनिए, ताकि बिहार से बाहर रहने वाले लोग अपने बिहार की दुहाई दे सके। लेकिन सवाल अब भी है कि क्या नीतीश के विकास पर बटन दबाएगा बिहार।
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