सुशांत झा |
बिहार चुनाव में इस बार ‘लालों’ या बेटे-बेटियों की चांदी है। वैसे ये न तो पहली बार हो रहा है, न आखिरी बार। लेकिन जो पार्टियां इस बात पर गर्व करती थीं कि उनके यहां पारिवारिक संपर्कों के आधार पर टिकट नहीं बांटा जाता वे भी पीछे नहीं रहीं।
बात करें नीतीश कुमार के जेडी-यू की तो उसकी लिस्ट में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों-जगन्नाथ मिश्र और राम सुंदर दास के दुलारों का नाम अहम है। यूं जगन्नाथ मिश्र के बेटे पहले भी इसी पार्टी से विधायक रह चुके हैं। नीतीश मिश्र को फिर से झंझारपुर से टिकट दिया गया है जबकि रामसुंदर दास के बेटे संजय कुमार को राजपाकड़ विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। जेडी-यू ने जहानाबाद के सांसद जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा को घोसी से टिकट दिया है। घोसी वहीं सीट है जहां से शर्मा खानदान 1977 से लगातार जीत रहा है। पिछली लोकसभा में चुन लिए जाने के बाद जगदीश शर्मा ने अपनी पत्नी को वहां से निर्दलीय जितवा दिया था। नीतीश कुमार, इस ताकतवर क्षत्रप के दुस्साहस पर कुछ नहीं कर पाए थे। अब उनके बेटे को टिकट दिया है।
रामचंद्र पासवान |
मजे की बात ये है कि पार्टी ने अपनी सुशासन और अपराध-मुक्त छवि को ताक पर रखते हुए कुछ अपराधियों के भाई और पत्नियों को टिकट से नवाजा है। तकनीकी तौर पर इसमें कोई खामी नहीं है, लेकिन व्यावहारिक बात सभी जानते हैं। पार्टी ने कई आपराधिक मामलों में फंसे विधायक शशि कुमार राय के भाई नंद कुमार राय को बरुराज से टिकट दिया है तो फुलपरास से हत्या के आरोपी पूर्व विधायक देवनाथ यादव की पत्नी गुलजार देवी को टिकट दिया है। जेडी-यू एक मामले में सचमुच अलग पार्टी दिखती है कि इसने बेटे तो बेटे, नेताओं के बाप को भी बुढ़ापे में टिकट दे दिया। पार्टी ने लोकसभा सांसद महेश्वर हजारी के पिता रामसेवक हजारी को टिकट दिया है तो उधर सांसद विश्वमोहन शर्मा की पत्नी सुजाता देवी भी टिकट पाने वालों की लिस्ट में है।
जेडी-यू ने पूर्व नौकरशाह और सांसद रहे सैयद शहाबुद्दीन की बेटी परवीन अमानुल्लाह को साहिबपुर कमल से टिकट दे दिया है। परवीन के पति अफजल अमानुल्लाह आईएएस हैं और नीतीश सरकार में गृह सचिव का ओहदा संभाल चुके हैं। कहा जाता है कि ये वहीं अमानुल्लाह हैं जिन्होंने रथयात्रा के दौरान आडवाणी की गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई थी। परवीन भी गुजरात मसले पर बीजेपी की घनघोर आलोचना कर चुकी हैं और उनके पिता सैयद शहाबुद्दीन तो बाबरी मस्जिद आन्दोलन के सूत्रधारों में रहे हैं। लेकिन मजे की बात ये है कि वहीं परवीन आज एनडीए की उम्मीदवार हैं, बीजेपी की ताऱीफ भी कर रही हैं। नीतीश कुमार ने बीजेपी को चिढ़ाना बंद नहीं किया है!
हालांकि पार्टी के आन्तरिक समीकरण की वजह से जेडी-यू ने मुजफ्फरपुर के कद्दावर सांसद कैप्टन जयनारायण निषाद के बेटे को टिकट नहीं दिया। उधर गोपालगंज के सांसद पूर्णमासी राम के बेटे विजय कुमार राम को भी टिकट नहीं दिया। विजय कुमार राम ने कांग्रेस में जुगाड़ लगाया और हरसिधी से टिकट पा गए। दूसरी तरफ कांग्रेस ने निषाद की बहू को हाजीपुर से टिकट दे दिया।
जगन्नाथ मिश्र |
इधर लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान के दो भाई मैदान में है। पूर्व सांसद रामचंद्र पासवान और पशुपति पारस दोनों विधायक बनने के लिए ताल ठोक रहे हैं। रामचंद्र पासवान कुशेश्वर स्थान से मैदान में है जबकि पारस अलौली से। पासवान की एक रिश्तेदार सरिता देवी ने सोनबरसा से टिकट हासिल किया है। लोजपा के राज्यसभा सांसद साबिर अली की पत्नी यास्मीन अली नरकटियागंज से टिकट की रेस जीत गई हैं तो पार्टी के उपाध्यक्ष सूरजभान सिंह के साले रमेश सिंह विभूतिपुर से मैदान में हैं। लोजपा ने गोविंदगंज से राजू तिवारी को मैदान में उतारा है जिनके भाई राजन तिवारी हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं।
बिहार चुनाव में राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर लगता है कि लोहिया के शिष्यों ने जमकर खानदानवाद की पैरवी की है। नीतीश कुमार ने कई बार ये इम्प्रेशन देने की कोशिश की कि unki पार्टी में परिवार के आधार पर टिकट नहीं बांटा जाता लेकिन ये बातें हवा-हवाई साबित हुई। कुल मिलाकर, कुलीनों का कुनबा बढ़ने वाला है।
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