राजीव कुमार |
(लेखक आईआईएमसी, नयी दिल्ली के पूर्व छात्र और टीवी टुडे ग्रुप (हेडलाईंस टुडे) में कार्यरत हैं )
कॉमनवेल्थ गेम्स तो खत्म हो गए लेकिन इसके साथ ही बहुत कुछ भी बदल गया लगता है। गेम्स से कुछ दिन पहले तक लोगों में जो आक्रोश था वो खेल शुरू होते ही ठंडा पड़ गया। मेडलों की चकाचौध में लोग भूलने लगे कि कुछ दिन पहले तक कलमाड़ी खलनायक जैसा लगता था। सोने और चांदी की खनक ने कलमाड़ी की भी बॉडी लैग्वेज बदल कर रख दी थी। हमारे पालिटिकल क्लास ने इसे बेहतरीन मौके के रूप में भुनाया। सरकार ने गेम्स खतम होने के तुरंत बाद जांच की घोषणा कर दी। इससे फायदा ये होना था कि अब लोग सरकार को परम ईमानदार मान लेते और कुछेक लोगों को जेल में बंद कर दिया जाता। हाल तक जनता की याददाश्त कमजोर होती थी, अब थोड़ी बढ़ी है, लेकिन आम जनता जो गांवो-कस्बों में रहती है वो अब दूसरे मसलों पर बात करने लगी है। मैं खुद एक महीना पहले तक जितना कलमाड़ी के बहाने भ्रष्टाचार को गरियाता था वो अब खत्म हो गया है। दोस्तों से बातचीत में अब कलमाड़ी नहीं आता बल्कि मैं अक्सर भारतीय खिलाड़ियों पर गर्व करने लगता हूं। ज्यादा वक्त ऐसे ही बीतने लगा है। मुझे वो हसीन सपने आने लगे हैं कि हम ओलंपिक में चीन को पछाड़ देंगे। हम एक दिन ओलंपिक की तैयारी करेंगे। अपने मुल्क में ओलंपिक करवाएंगे।
ओलंपिक : बहुत भोले होते हैं भारतीय लोग |
यहीं से कलमाड़ी की संभावनाएं फिर से शुरू होती हैं। कलमाड़ी कह चुके हैं कि भारत को ओलंपिक कराने चाहिए। मेरी सोच, जो मेरे जैसे करोड़ो युवाओं की सोच है उसे कलमाड़ी फिर से कैश कराने के लिए तैयार बैठा है। बहुत जल्दी, शायद साल भर के भीतर ही जांच एजेंसियाँ कलमाड़ी को क्लीन चिट भी दे देंगी। मुझे यकीन हो चला है कि वो (कलमाड़ी) इतना कच्चा खिलाड़ी नहीं है कि उसने पेपर वर्क में कोई कसर छोड़ी होगी।
कलमाड़ी : कहीं थी निगाहें कहीं था निशाना |
लेकिन कलमाड़ी अभी भी चालें चल रहे हैं। शायद अगली बार पूरे देश के बजट का आधा वो ओलंपिक पर झोंकवा दे। खेलों के बाद मेरे पापा भी ओलंपिक की बात करने लगे है और अक्सर मैं भी। लेकिन मैं चाहता हूं कि सिस्टम ठीक हो जाए। वो कलमाड़ी जैसे लोगों के हाथों में न हो।
राजीव बिलकुल सही लिखा है तुमने। काश कि लोकतंत्र की सौतेली संतानों पर भी कॉमनवेल्थ..एशियाड और ओलिंपिक के आयोजन जितनी ही तत्परता दिखे..
ReplyDeletei agree...Rajiv u r rite.
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