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धीरज वशिष्ठ |
तेज़ भागती जिंदगी में एक कॉमन प्रॉब्लम जो हमारे सामने आ खड़ी है वो है- तनाव। हाई ब्लडप्रेशर, ऐंगज़ाइटी (चिंता), डिप्रेशन जैसी तमाम बीमारियां इस तनाव की देन है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े कामकाजी लोग हर कोई तनाव से दो-चार है। ऐसे में सवाल है कि इस तनाव से छुटकारा कैसे मिले? योग की परंपरा में तनाव से लड़ने की अचूक तकनीक है। आसन, प्राणायाम और रिलेक्शेशन तकनीक से लेकर कई दूसरी तमाम चीज़ें। “न्यूज़ रूम के फाइव फ़िटनेस मंत्र” आलेख में मैंने इससे संबंधित कुछ चीजों का ज़िक्र किया था, लेकिन यहां तनाव को लेकर योग के जो गहरे कॉन्सेप्ट हैं, उसकी बात करेंगे।
क्यों होता है तनाव ?
तैतरीय उपनिषद हमारे शरीर को पांच कोशों का बना मानता है। इन पांच कोशों में मनोमय कोश काफी अहम हैं। तनाव का संबंध मनोमय कोश में असंतुलन से है। असुंतलन की वजह है अनियमित जीवन शैली, हमारी महत्वकांक्षाएं, हर दिन आसमान छूती उम्मीदें वगैरह..वगैरह। तनाव को लेकर योग के इस कॉन्सेप्ट को एक लाइन में कहें तो, ‘स्पीड इज़ ए स्ट्रेस’। हमारी रफ़्तार भरी ज़िंदगी ने तनाव को पैदा करने का काम किया है। क्लास में फर्स्ट आने की तेज़ी, करियर में आगे बढ़ने की तेज़ी। कम उम्र में सबकुछ पाने लेने की तेज़ी। इस तेज़ी ने हमें बैचेन कर रखा है, हमारी शांति खो चुकी है और हम बीमारियों के एक घर बन गए हैं।
कैसे मिले निज़ात ?
सवाल है कि तनाव से छुटकारा कैसे मिले ? जिंदगी में ऐसी कई चीज़ें हैं जिसे हम चाहकर भी बदल नहीं सकते। इस भागदौड़ वाली जिंदगी में हमें न चाहते हुए भी भागना पड़ता है। ऐसे में अपने मनोमय कोश को संतुलित रखने के लिए मानसिक धरातल पर हमें ज्यादा काम करना पड़ेगा। चीज़ों को देखने, रिएक्ट करने की मानसिकता बदलनी पड़ेगी।
... मन का न हो तो ज्यादा अच्छा !!!
तनाव में फंसी जिंदगी की नाव |
महत्वाकांक्षा को जाने दें
महत्वाकांक्षा तनाव की सबसे बड़ी वजह है। तनाव से दूर रहना है तो होशपूर्वक महत्वाकांक्षा को जीवन से जाने दें। महत्वाकांक्षा खबर देती है कि हम भविष्य में जीते हैं, हमारा वर्तमान से कोई सरोकार नहीं है। योग वर्तमान में होने की कला है। गीता कहती है “तेरा सिर्फ कर्म पर अधिकार है फल पर नहीं”। हम मेहनत से जी न चुराएं लेकिन फल में ज्यादा उलझे नहीं। मेहनत करने पर किसी वजह से हमें मन का सोचा नहीं मिलता और हम तनाव की गिरफ़्त में आने लगते हैं।
चले वाते चलं चित्तं...
यौगिक ग्रंथों का मानना है कि " चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत् ", अर्थात प्राणवायु तेज़ हो तो मन तेज़ होता है और प्राणवायु शांत हो तो मन शांत होता है। ये सूत्र हमें तनाव से लड़ने की तकनीक देता है। जब हमारा मन अशांत होता है यानी तनाव का शिकार तो उस वक्त हमें लंबी-गहरी सांस यानी डीप ब्रीदिंग करनी चाहिए। जैसे-जैसे हमारी सांसें सिंक्रोनाइज़ होती जाएंगी, हमारा मन शांत होता जाएगा और हमें मिलेगी तनाव से छुट्टी। उज्जयी प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम और ऊं चैंटिंग सबसे ज्यादा कारगर।
ये आराम कौन-सी बला है ?
हंसो-कहकहे लगा लो.... |
बच्चों के साथ दोस्ती करें
छोटे बच्चों के साथ खेलना शुरू कर दें। खासतौर पर तनाव के वक्त अपने को छोटे बच्चों को साथ बिज़ी करें, आप पाएंगे तनाव छूमंदर हो गया। बेहतर हो आप ख़ुद ही बच्चे बन जाएं।
आख़िरी बार ठहाका कब लगाया ?
खासतौर पर महानगरों की संस्कृति में हम हंसना भूल गएं हैं। हमें ठीक से याद नहीं होगा कि हम आख़िरी बार कब ठहाके लगाकर हंसे थे। सो, ठहाके को जीवन को शामिल करें। हां, कुछ लोग आपको देहाती कह सकते है, लेकिन ये बात भी तो ठहाके लगाने के लिए काफी है। हा हा हा।
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dheeraj ji you are right,we have forgotten our laughter,all day busy with our tensions,but yoga has helped me a lot,the whole day i feel like charged up,thanks for your advise about the surya namaskar
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