Saturday, December 18, 2010

क्यों नाचे मेरा मन मोर?

धीरज वशिष्ठ
(लेखक आईआईएमसी नई दिल्ली के पूर्व छात्र, योग इंस्ट्रक्टर और स्वतंत्र पत्रकार हैं)
‘’यार आज कुछ करने का मन नहीं कर रहा। मन करता है ऑफिस ना जाऊं, चुपचाप घर पे ही बैठा रहूं। हां.. मेरा भी काम पे जाने का मन नहीं कर रहा.. चलो मूवी देखने चलते है, शायद वहां मन लग जाए।‘’


मेट्रो में मेरे साथ बैठे दो मुसाफिरों की बात की ये एक छोटी-सी झलक है। आप समझ गए होंगे कि दोनों मुसाफिरों का मन मेरे और आपके मन की तरह ही बेचैन है। आप कह सकते हैं कि मन बहका-बहका है। मन मोर को बहलाने के लिए मूवी जाने की भी बात हो रही है। जीवन की इस बगिया में मन की इच्छाएं अनंत हैं। मन हमेशा बेचैन रहता है, मन वहां नहीं होता जहां हम होते हैं।

आपने कभी महसूस किया है कि हम जो भी करते हैं शायद ही मन-पूर्वक करते हैं। हम मशीन की तरह काम किए जा रहे हैं और हमारा मन दूसरे हज़ार कामों में लगा हुआ है। कोई तालमेल ही नहीं। हम रास्ते पर चल रहे हों- शरीर तो वहीं होता है, लेकिन मन कहीं और लगा रहता है। कभी घर पर, तो कभी गर्लफ्रैंड के पास, तो कभी यहां तो कभी वहां। इतना तय है कि मन वहां नहीं होगा, जहां हम हैं।


हमारा मन मोर हमेशा नाचता रहता है। महाभारत के वक्त जो दुविधा अर्जुन के सामने खड़ी थी वहीं दुविधा मन को लेकर आज भी हमारे बीच है।
  
                     चंचलं हि मनः कृष्णं प्रमाधि बलवद दृठम् ।

                 तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥

                                                       गीता- 6/34
अर्थात- ये मन बड़ा ही चंचल स्वभाववाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है और इसको वश में करना वायु को रोकने की तरह बहुत मुश्किल है।


अर्जुन की तरह हमारे लिए भी इस बावरे मन को बहलाना मुश्किल है, अपने साथ रखना कठिन है।  सदियों से हम मन को भला-बुरा कहते आए हैं। हर चीज के लिए मन को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। हम कहते हैं कि क्या करे भाई.. मन ही नहीं मानता। मैं तो खूब मेहनत करना चाहता हूं, लेकिन मन ही धोखा दे जाता है.. वगैरह..वगैरह। क्या वाकई मन का ही है सारा कसूर सवाल है कि कैसे हो हमारा मन हमारे साथ ?


मन के हारे हार, मन के जीते जीत 
योग और तंत्र जैसी सभी प्राचीन तकनीकों से मन को साधने की कोशिश हो रही हैं। तिब्बत की ल्हासा यूनिवर्सिटी में मन को लेकर एक बड़ा ही हैरान करने वाला प्रयोग हुआ है। प्रयोग ये है कि लोग नंगे बर्फ पर बैठ जाते हैं, लेकिन उनके शरीर से पसीना आता रहता है। दरअसल पूरे प्रयोग के दौरान बर्फ पर बैठा आदमी ये मानने से इनकार कर देता है कि वो ठंड महसूस कर रहा है। वो मन को ये कहता रहता है कि तेज धूप खिली हुई है और गर्मी से शरीर पसीना-पसीना हो रहा है। इसतरह से मन को इस माहौल के लिए तैयार किया जाता है कि शरीर पसीना छोड़ने लगता है।


प्रयोग से साफ है कि जिस मन की बेचैनी से हम परेशान रहते हैं, उसी मन की शक्ति का हम इस्तेमाल अलग तरीके से कर सकते हैं। दरअसल मन काफी निराला है, उसे सही दिशा दें तो हम कुछ भी मुमकिन कर सकते हैं। साफ है कि मन खुद में बुरा-भला नहीं है, सारा दारोमदार इस बात पर है कि हम कैसे उसकी शक्ति का इस्तेमाल करें।


इसके मद्देनज़र बुद्ध की जिंदगी से जुड़ी एक बेहद रोचक कहानी है। बुद्ध अपने शिष्य आनंद के साथ कहीं विहार को निकले थे। रास्ते में उन्हें जोर की प्यास लगी। आनंद पास की पहाड़ी वाले झरने पर पानी लेने गया, लेकिन झरने से अभी-अभी गाड़ियां निकली थी और पानी गंदा हो गया था। आनंद बिना पानी लिए लौट आया। फिर बुद्ध से आकर कहा कि झरने का पानी साफ नहीं है, मैं थोड़ा पीछे लौट कर नदी से पानी ले आता हूं। बुद्ध ने आनंद को झरने का पानी ही लाने के लिए वापस लौटा दिया। आनंद फिर खाली हाथ लौट आया, पानी अब भी पीने लायक नहीं लग रहा था। बुद्ध ने तीसरी बार भी उसे वापस लौटा दिया। इसबार आनंद झरने के पास पहुंचा तो हैरान हो गया, पानी बिल्कुल कंचन हो गया था, पीने लायक।


बुद्ध, आनंद से कहते हैं मन की स्थिति भी झरने की तरह है। जीवन की गाड़ियां उसे अशांत और गंदा कर जाती है, लेकिन कोई अगर शांति से उसे देखता रहे तो वो निर्मल हो जाता है, पवित्र और शांत हो जाता है। बुद्ध कहते हैं कि मन के साथ कुछ करो नहीं, सिर्फ साक्षी बन जाओ.. यानी मन को शांत करने की कोशिश ना करें आप सिर्फ ऑब्जर्ब करें। मन सही कर रहा है या गलत, प्रतिक्रिया ना करें, सिर्फ देखें। योग जिसे ध्यान कहता है वो कमोबेश यही है- साक्षीभाव का विकसित होना। ना मन से लड़े, ना दोस्ती करें.. सिर्फ अपने अंदर दृष्टा यानी देखने वाले को पनपने दें। फिर देखिए कैसा नाच पाता है हमारा मन मोर। 


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5 comments:

  1. बहुत बेहतर लिखा है। वशिष्ठ तुम मानव मन को समझने लग गए हो

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  2. good piece, I read with interest, wait for the next one....

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  3. धीरज, तुममें एक अलग किस्म की संभावना दिख रही है मुझे। मुबारक हो।

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  4. मुझे बेहद पसंद आया यह लेख , मन को समजना शायद इस लेख के बाद मन के साथ आनंद करने का प्रयास जरुर करूँगा .

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  5. loving ur articles. bahut gyanwan article hai." सिर्फ साक्षी बन जाओ.." I am going to try to. Thanks for so informative article.

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