Wednesday, December 8, 2010

क्या है इस देश में एक जान की कीमत?

फटते हैं बम चीख उठती इंसानियत  
कौन हैं वो लोग जो बम बनाते हैं, इससे अच्छे तो वो कीड़े हैं जो रेशम बनाते हैं बुधवार सुबह उठते ही जब अखबार खोला तो ये लाइनें पढ़कर कुछ अजीब सा महसूस हुआ। रेशम से तुरंत ही दिमाग में बनारसी साडि़यों की याद आ गई। मेरे कुछ रिश्तेदार रहते हैं वहां। मंगलवार को बनारस के शीतला घाट पर बम फटा। वहां हर कोई किस्मत वाला था सिवाय छोटी सी स्वास्तिका के। 18 दिसंबर को उसका दूसरा जन्मदिन था। उसके मम्मी-पापा ने उसका बर्थ डे मनाने की तैयारियां शुरू कर दी थीं। यूपी सरकार ने स्वास्तिका के परिजनों को एक लाख रुपये का मुआवज़ा देने की बात कही है। पैसे से अगर दिल के ज़ख्म भर जाते तो क्या बात थी?

क्या कसूर है मासूमों का?
स्वास्तिका के पिता संतोष के मुताबिक उनकी बेटी अपनी मां की गोद में थी। अचानक धमाका हुआ और बेटी पर कुछ पत्थर आकर गिरे। मदद के लिए मैं और मेरी पत्नी चिल्लाए लेकिन कुछ नहीं हो सका। अस्पताल पहुंचते-पहुंचते मासूम स्वास्तिका की सांसें थम गईं। धमाके में सिर्फ एक बच्ची की मौत हुई थी तो ज़्यादा हंगामा भी नहीं हुआ। हंगामा हो भी क्यों? मेरी-आपकी लाडली तो थी नहीं स्वास्तिका। रोएंगे मासूम स्वास्तिका के मां-बाप और बूढ़े दादा। कभी अपने घर के दो साल के बच्चे की खिलखिलाहट को महसूस करिएगा। वो लम्हा भी महसूस करिएगा जब आपके बच्चे को चोट लग जाए और वो रो पडे़। इतना सोचकर ही छाती फट जाती है। अब ज़रा स्वास्तिका के परिवार के दर्द को फिर से महसूस करिए। सच कहा जाए तो हमारी संवदेनाएं मर चुकी हैं।

26/11 के हमले ने पूरे देश को एकसाथ खड़ा कर दिया। लाखों लोग सड़कों पर उतर आए। 2009 में समाज में फिर मुर्दा ख़ामोशी छा गई। 2010 आते-आते तो हम लोगों ने ऐसा बर्ताव किया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। क्या कीमत लगाई जाती है इस देश में एक जान की? एक, दो, पांच, सात या फिर 10 लाख। सरकार दे देती है न चेक। पैसा लीजिए और नेताओं की जान छोडिए। इधर स्वास्तिका के घर में आंसू थमे भी नहीं थे कि यूपी सरकार और केंद्र के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हो गया। यूपी के डीजीपी करमवीर सिंह तो सबसे आगे निकले। बुधवार सुबह हर अख़बार में उनका बयान छपा था। कह रहे थे, हमारे पास कोई इंटेलिजेंस इनपुट नहीं था। वैसे भी यूपी में सब भगवान भरोसे ही है। राहुल गांधी आकर लौट जाते हैं और खुफियागीरी करने वाले कहीं चुनई बना रहे होते हैं। बुधवार को चिदंबरम वाराणसी पहुंचे। बोले, हमने तो यूपी सरकार को पहले ही अलर्ट कर दिया था। थोड़ी देर बाद यूपी के कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिंह टीवी पर दिखे। बोले, हमें केंद्र सरकार ने कोई इंटेलिजेंस इनपुट नहीं दिया। दोनों एक-दूसरे पर तोहमत जड़ रहे हैं। वो भी इसलिए कि सिर्फ एक मासूम बच्ची की ही तो मौत हुई है। देश में दहशत है लेकिन कोई खास रिएक्शन नहीं दिखा। पब्लिक भी तब बोलती है जब खून-खराबा ज़्यादा हो जाता है।  याद कीजिए 26/11 के पहले का वो दौर जब बम धमाके रुटीन में होने लगे थे तो तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल और गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल टीवी पर आते थे। कहते थे, हमने राज्य को पहले ही अलर्ट कर दिया था। जब मुंबई पर हमला हुआ तो श्रीप्रकाश गायब ही हो गए थे। बीते दो सालों में कुछ बड़ी आतंकी हरकतें कम हुई तो नेता फिर बेलगाम हो गए।

मुआवजा देकर सरकार का काम पूरा 
ताज़ा मामले को देखिए। केंद्र और यूपी के बीच कुछ उस तरह की बयानबाज़ी हो रही है जैसे एक ज़माने में सौरव गांगुली और स्टीव वॉ के बीच होती थी। अब देखना ये है कि इस मैच में सौरव कौन बनेगा? चिदंबरम की तो बात ही निराली है। एक साल की चुस्ती और फिर सुस्ती। कॉमनवेल्थ खेलों के पहले जब पूरी दिल्ली पर गहरा पहरा था तो बाइक पर कुछ सिरफिरे आए और गोली-बम चला गए। अभी तक कोई नहीं हत्थे चढ़ा? क्या कहा जाए इसे? काहिली, हरामखोरी या कुछ और। आंकड़ें बताते हैं कि 2005 से अब तक 10 बम धमाकों में 517 लोगों की मौत हो चुकी है। 

स्वास्तिका की मौत पर खूब राजनीति हो रही है लेकिन इस समाज के लिए कवि पाश एक सन्देश देकर गए हैं...

सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से भर जाना
न होना तड़प का !!
सब सहन कर जाना...


(लेखक विवेक आनंद/प्रवीन मोहता आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं)

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