विवेक आनंद |
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं)
बड़ी पुरानी कहावत है। कुछ पुराने ‘प्रेमची’ कह गए हैं प्यार अंधा होता है। कब, कहां, किससे हो जाए, कहा नहीं जा सकता। बस दिल में एक हूक सी उठती है और सबकुछ धुआं-धुआं सा हो जाता है। फिर कुछ दिखाई नहीं देता। महबूब आड़ा-तिरछा कैसा भी हो... दुनिया में सबसे खूबसूरत दिखता है। आंखें भैंगी ही क्यों ना हो... लेकिन वही झील सी दिखती है। बस उसी में डूब जाने को दिल करता है। बॉबकट वाली बाला क्यों ना हो, उसके वही गेसू आसमान की काली घटा से दिखते हैं। पुराने ‘प्रेमची’ कह गए हैं कि ‘दिल लगी दीवार से तो परी क्या करे’ लेकिन हकीकत में ऐसा होता है क्या?
पुराने ‘प्रेमचियों’ की कही बात पर भरोसा नहीं होता। ऐसा होता कहां है? मुझे तो इसमें शक है। मुझे तो लगता है कि प्यार बड़ा सोच समझकर किया जाता है, अच्छी तरह से आंखें खोलकर, देखभाल कर किया जाता है। दीवार से दिल नहीं लगता, दिल तो परी पर ही आता है। मेरा पर्सनल एक्सपीरियंस तो यही कहता है। अब अगर किसी को मेरे प्यार पर शक हो तो ये अलग बात है लेकिन सच्चे दिल से मैं इतना दावा तो कर ही सकता हूं कि मेरा प्यार भी 100 फीसदी डबल फिल्टर्ड प्यार था लेकिन ‘कमबख्त’ ने उस प्य़ार की वैल्यू ही नहीं समझी। शायद उसने भी मेरी तरह आंखें खोल रखी थीं। अब परी को भी तो कोई कॉम्पिटेंट आइटम चाहिए।
बिन पैसे हम न होंगे तेरे !!! |
वो मेरे साथ ही पढ़ती थी। कुछ मजबूरियों की वजह से हम करीब आए और मुझे प्यार हो गया। परी से कम नहीं थी वो, आंखें खुली रखकर जो प्यार किया था इसलिए दीवार से दिल लगाने का चांस ही नहीं था। हमने साथ-साथ वक्त गुजारा, लंबे अरसे तक साथ रहे, लगा कि पब्लिकली ‘वी आर द बेस्ट फ्रेंड्स’ कहना तो लड़कियों की आदत होती है। मामला तो जम ही जाएगा लेकिन जब लगा कि अब काफी वक्त हो चुका है और अब तो इज़हार-ए-मोहब्बत के बिना काम नहीं चलने वाला तो मामला ही उल्टा हो गया। फिर तो सारा प्यार हवा-हवाई हो गया। मामला फुस्स...दिल टूट गया मेरा...और खुद को संभालने के लिए मैंने पूरी शिद्दत से पुराने ‘प्रेमचियों’ के नुस्खे अपनाए। रो-रोकर बाल्टी भर दी। जो अब तक देखा सुना था वही सब हुआ मेरे साथ। कुछ भी नया नहीं। हर जगह उसकी ही तस्वीर नज़र आने लगी। हसीन लम्हों की याद दिल से उतरती ही नहीं थी। कुछ दिनों बाद पता चला कि उसका मामला फिक्स हो गया है। बिल्कुल कॉम्पिटेंट आइटम ढूंढ़ा था उसने। उसने भी दीवार से दिल लगाने का चांस नहीं लिया। बिल्कुल आंखें खोलकर अपने लिए सही आइटम का चुनाव किया। यकीनन मेरे से ज्यादा काबिल था... हर लिहाज से... बाद में मुझे ये अहसास भी हुआ कि उसने बिल्कुल सही कदम उठाया था...
दिल तो बच्चा है जी... |
सच बात है... अब पुराने ‘प्रेमचियों’ की कही बात की कोई वैल्यू नहीं रही। ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे। खुद में कई और गिना सकता हूं। कई और किस्से बता सकता हूं...इसलिए कहता हूं कि प्यार अब अंधा नहीं रह गया है...प्यार को आंखें मिल गई हैं।
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naam batao desh janna chahta hai..tumhare pyar k katil kaa naam-
ReplyDeleteपीजी डिप्लोमा इन अफेयर एंड लव मैनेजमेंट का कोर्स जल्दी ही शुरु होगा।.वैसे भी कविता और साहित्. के प्रेम आउटडुटेड हो गए हैं।.
ReplyDeleteवैसे महर्षि मार्क्स ने कथित तौर पर बयान दिया था कि प्रेम और दोस्ती संशोधित आर्थिक संबंध हैं! उस हिसाब से आपका कथन सत्य के करीब है।
ReplyDeleteपुराने प्रेमचियों की कही इस बात से में इत्तिफाक रखता हूं कि आत्मा की तरह प्यार अमर है...एनर्जी की तरह इसका ट्रांसफॉर्मेंशन संभव है...और विनीत जी प्यार में बदलाव आया है...प्रेम के बदलते पैमाने पर रिसर्च भी की जा सकती है...
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