Thursday, December 16, 2010

क्या बची रहेगी करुणानिधि की कुर्सी?

मनोज मुकुल
(लेखक आईआईएमसी] नई दिल्ली के पूर्व छात्र और स्टार न्यूज़ में एसोसिएट सीनियर प्रोडयूसर हैं)
तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव समय से पहले मुमकिन हो सकते हैं। स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर इस वक्त कांग्रेस और डीएमके के रिश्तों में जो दरार पड़ी है उसका नतीजा समय से पहले राज्य में चुनाव के संकेत दे रहे हैं। शनिवार को चेन्नई में डीएमके कोर कमेटी की बैठक हो रही है। बहुत मुमकिन है कि डीएमके केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लें। हालांकि दिल्ली सरकार से समर्थन वापस लेने की सूरत में मनमोहन सरकार पर कुछ खास असर नहीं पड़ेगा और मनमोहन जुगाड़ के सहारे पीएम बने रहेंगे।
जाने कहां गए वो दिन...
डीएमके के कुल 18 सांसद हैं जो इस वक्त यूपीए सरकार में शामिल होकर समर्थन दे रहे हैं। करुणानिधि की घोर विरोधी और पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के पास 9 सांसद हैं जो जरूरत पड़ने पर मनमोहन का साथ देने को तैयार बैठी हैं। हालांकि बहुत मुमकिन है कि शनिवार को डीएमके कोर कमेटी की मीटिंग के किसी फैसले से पहले कांग्रेस वहां करुणानिधि सरकार से समर्थन वापस ले लें। चेन्नई की सरकार करुणानिधि कांग्रेस की बदौलत चला रहे हैं। करुणानिधि के पास स्पीकर सहित 100 एमएलए हैं और कांग्रेस के पास 36. सरकार बचाने के लिए तमिलनाडु विधानसभा में बहुमत चाहिए 118 (234) का । हालांकि नीचे के आंकड़े को देखे तो सरकार बचाने की कोशिश अगर होती है तो ज्यादा परेशानी नहीं होगी। क्योंकि लेफ्ट के 15 विधायक लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस की वजह से करुणानिधि से दूर गए थे, हो सकता है कांग्रेस के अलग होने के बाद और नए समीकरण में ये फिर से करुणानिधि के पाले में लौट आएं। लेफ्ट के साथ आने से करुणानिधि की सरकार तो बच जाएगी लेकिन चुनाव से ठीक पहले राज्य में नए समीकरण जन्म लेंगे।
DMK+ @ AIADMK @ OTHERS
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DMK 100 @ AIADMK 57 @ PMK 18
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INC 36 @ CPM 9 @ DMDK 1
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VCK 2 @ CPI 6 @ Ind 1
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***** MDMK 3 @ Ind 1
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TOTAL 138 @ 75 @ 21
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2007 @166 @ 66 @ 2
करुणानिधि की बेटी कनिमोझी के करीब तक पहुंच गई है सीबीआई की टीम। मतलब साफ समझा जा सकता है कि सीबीआई अब करुणानिधि के परिवार के पीछे पड़ चुकी है। ए राजा को करुणानिधि का दत्तक पुत्र माना जाता है। स्पेक्ट्रम घोटाले में नाम आने के बाद इस्तीफे को लेकर जो दबाव की राजनीति हुई उससे सिर्फ कांग्रेस या मनमोहन ही नहीं पूरा देश वाकिफ है। ए राजा की कुर्बानी करुणानिधि नहीं चाहते थे। राजनीति के जानकार और इस परिवार को करीब से समझने वाले बताते हैं कि कनिमोझी और ए राजा को कोई कनेक्शन भी है। जिसको लेकर करुणानिधि को कई बार मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा है। लेकिन परिवार प्रेम में करुणानिधि ज्यादा अंधे हो चुके हैं और उन्हें सही गलत का अंतर नहीं दिख रहा। मामला घर में घुस चुका है इसलिए इज्जत और गद्दी किसी न किसी की कुर्बानी तो देनी ही पड़ेगी।
पब्लिक सब जानती है
वैसे भी कांग्रेस से दूरियां तो लगातार बढ़ रही थी इसके संकेत लगातार राहुल गांधी देते रहे हैं। राहुल लोकसभा चुनाव के बाद तीन-चार बार तमिलनाडु हो आए लेकिन करुणानिधि से राम-सलाम भी नहीं हुआ। साल भर पहले करुणानिधि दिल्ली आए थे तो अपने लोगों के लिए मंत्रिमंडल का कोटा सेट कर लौट गए, तब से उनकी दिल्ली दरबार में किसी से मुलाकात भी नहीं हुई है। पिछले दिनों अलागिरी के घर शादी में प्रधानमंत्री, सोनिया या राहुल में से कोई नहीं गया। प्रणब मुखर्जी गए थे माहौल समझने के लिए। कहने का मतलब ये कि संकेत तो समय समय पर मिलते रहे हैं, लेकिन असली समय का ही इंतजार हो रहा है।
पिछली बार जब करुणानिधि वोट मांग रहे थे तब कहा गया था कि ये उनका आखिरी चुनाव है, अगले चुनाव में विरासत अगली पीढ़ी को पूरी तरह सौंप देंगे। लेकिन जो हालात बन गए हैं उनको देखकर नहीं लगता कि इस बार भी वो अपना असली वारिस चुन पाएंगे। वैसे भी स्टालिन और अलागिरी के बीच संबंध ठीक होने से रहे। कनिमोझी कनेक्शन ने मामला और खराब किया है लेकिन क्या पता, फैसला जनता को करना है, जो हर वक्त नैतिकता के तराजू पर सब कुछ नहीं तौलती।

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