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धीरज वशिष्ठ |
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र, योग इंस्ट्रक्टर और स्वतंत्र पत्रकार हैं)
भगवान बुद्ध महापरिनिर्वाण को प्राप्त हो रहे थे। शरीर भी छोड़ने का वक्त आ चुका था, चारों तरफ उनके शिष्यों का जमावड़ा लगा हुआ था। निर्वाण को प्राप्त बुद्ध के चेहरे पर आनंद की किरणें चमक रही थीं, लेकिन शिष्य उदास थे। बतौर शरीर बुद्ध अब कुछ वक्त ही उनके साथ रहने वाले थे। शिष्यों ने बुद्ध से कहा कि जाते-जाते बता जाएं कि हम किस राह पर चलें, क्या करेंगे, कैसे रहेंगे ?
बुद्ध का जवाब था - अप्प दिपो भव: यानी अपना दीया आप बनो। संदेश साफ था कि नकल ना करो, तुम खुद तय करो कि तुम्हे क्या होना है? खुद तय करो कि तुम्हे कौन-सी राह पकड़नी है। दूसरों की रोशनी से अपनी राह रौशन ना करो, खुद का रास्ता खुद बनाओ।

बुद्ध ने आखिरी वक्त जो कहा वो उनकी जिंदगी का निचोड़ था। बुद्ध ने अपनी राह खुद बनाई थी और उसी पर चलकर ही वो सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध तक का सफर तय कर पाएं। महल को छोड़ बुद्ध जब नई राह की तलाश में निकले तो कई जगह भटके, कई गुरुओं के पास पहुंचे। योग, सांख्य, उपवास और ना जाने क्या-क्या। आखिरी में सब तरफ से निराश होकर बुद्ध शांत होकर बैठ गए। ये वो वक्त था जब बुद्ध पहली बार वास्तविक अर्थों में अपने साथ हो पाएं थे और उसी क्षण वो निर्वाण (आत्म-साक्षात्कार) को प्राप्त हो गए। उन्होंने वो पा लिया, जिसके लिए वो सब कुछ छोड़कर निकल पड़े थे, लेकिन ये प्राप्ति उन्हें अपने होने से हुई। जब तक नकल में रहे, चूकते गए। इसलिए आखिरी वक्त में भी बुद्ध जब शरीर छोड़ रहें थे तो उनका संदेश यहीं था कि तुम बुद्ध होने की कोशिश न करो, बुद्ध की नकल न करना, तुम खुद में अनोखे हो, तुम अपने अंदर का दीया चलाओ और रौशन हो जाओ।
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बुद्धं शरणम गच्छामि |
ताउम्र हम भी बुद्ध के शिष्यों की तरह दूसरों से अपनी राह के बारे में पूछते चले आ रहे हैं। खुद अपनी राह बनाने की जगह हम दूसरे के बनाए रास्ते पर चलने पर भरोसा करने लगे हैं। हम नकल में पड़े हुए हैं। पड़ोस में कोई आईएएस बन जाता है, हम सोचने लगते हैं कि मैं क्यों नहीं आईएएस बन जाऊं। मेरा बेटा, मेरा भाई भी आईएएस बन जाए। कोई सचिन बनना चाहता है तो कोई अंबानी। कोई अमिताभ बच्चन बनना चाहता है तो कोई बरखा दत्त में खुद को ढूंढता है। हम नकल में पड़े हुए हैं, हम सिर्फ भीड़ के साथ होने की कला जानते हैं। हम अपने वजूद को टटोलने से कतराते हैं।
दरअसल हमें क्या होना है, हम ये नहीं तय कर पा रहे हैं। हमारा होना कभी मां-पिता जी तय करते हैं, तो कभी समाज का दबाव तय करता है। हम खुद क्या होना चाहते है, नहीं तय कर पा रहे हैं। एक शख्स जो अच्छा पेंटर बन सकता था, उसे अक्षय कुमार बनने का भूत सवार हो जाता है। एक शख्स जो अच्छा साइंटिस्ट बन सकता था वो सचिन तेंदुलकर की तरह क्रिकेट की दुनिया में छा जाने का सपना देखने लगता है। बस, यहीं पर हम चूक जाते हैं। सचिन, सचिन होने के लिए पैदा हुए हैं। धीरूभाई अंबानी, धीरूभाई बनने के लिए पैदा हुए थे। हम-आप कुछ और होने के लिए पैदा हुए हैं। हम नकल न करें, हम तय करें कि हमें क्या होना है, हमारे अंदर क्या है और उसे हम कैसे सही दिशा दे सकते हैं। जिन्होंने अपने अंदर की इस आवाज़ को सुना है, पहचाना है, वो महान हो गए, उन्होंने अलग छाप छोड़ दी।
गीता भी इसी का उद्घोष करती है :
“स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:”
गीता- 3/35
यानी अपनी निजता में मर जाना बेहतर है, लेकिन दूसरों की नकल डरावनी है। हालांकि कई लोग गीता के इस श्लोक को बड़े ही सतही तौर पर देखते हैं। वो श्लोक का अर्थ निकालते हैं - “अपने धर्म में मर जाना बेहतर है, दूसरे का धर्म भयावह यानी डरावना है” ।
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डरावनी है दूसरों की नक़ल |
नहीं कृष्ण के कहने का अर्थ यहां कहीं ज़्यादा गहरा है। वो साफ कह रहे हैं कि तुम्हारी जो निजता है यानी तुम्हारा जो खुद का होना है वही कल्याणकारी है न कि दूसरों की नक़ल। अर्जुन का धर्म क्षत्रिय का है, लेकिन महाभारत के युद्ध से ठीक पहले वो विषादग्रस्त होकर संन्यासियों जैसी बातें करने लगते हैं, जो कि उसका धर्म यानी निजता नहीं है। कृष्ण उसी के मद्देनजर अर्जुन से कह रहें हैं कि तुम क्षत्रिय होने की वजह से युद्ध को स्वीकार करो, ना कि संन्यासियों की तरह बातें कर पलायन की सोचो।
चाहे गीता हो या बुद्ध के वचन, हर तरफ से एक ही इशारा है कि हमें अपना रास्ता खुद तैयार करना होगा। धीरूभाई अंबानी ने इस आवाज को अनसुना किया होता तो वो दुबई की किसी कंपनी में मैनेजर होकर रह जाते। सचिन ने अनसुनी की होती तो बेशक वो क्लास में फेल न हुए होते लेकिन दुनिया उनको ‘मास्टर-ब्लास्टर’ कहकर नहीं पुकारती। हमें भी उस आवाज़ को सुनने के लिए कान लगाने की ज़रूरत है। हमें भी अपने लिए अपना रास्ता बनाने की ज़रूरत है, भले ही वो रास्ता कितना ही कांटों से भरा हो, वो हमारा खुद का रास्ता होगा। उसी राह पर चलकर ही हम अपने होने को पा सकेंगे।
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