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Monday, January 3, 2011

डायरेक्ट एक्शन प्रेम

मंजीत ठाकुर 
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र और डीडी न्यूज़ में वरिष्ठ संवाददाता हैं)
आजकल कई लोग लव गुरु होने पर उतारू हैं। प्यार होने न होने के तरीकों पर अजब-गजब लिख रहे हैं। प्यार को धर्म और अध्यात्म की पवित्र राहों से निकाल कर मैं उसे फ्रायडिन गलियारे में ले चलता हूं। जहां महर्षि मार्क्स की मूर्ति के नीचे इसके डायरेक्ट एक्शन तरीकों की चर्चा की जा सके।
पिछले पोस्ट में मैंने प्रेम जताने के डायरेक्ट ऐक्शन तरीके की चर्चा की  थी। डायरेक्ट का तो मतलब ही होता है, सीधे। मतलब सीधी कार्रवाई। इसमें आपको अपनी प्रेमिका की मचान पर लटके शिकारी की तरह प्रतीक्षा नहीं करनी होती। सीधे प्रेमिका के पास जाइएसारा प्रेम एक ही दफा पकड़ कर जबरिया प्रकट कर दीजिए। हमारे हिंदुस्तान में यह  बहुत प्रचलित है।


नेतापुत्रों और सत्ता के दलालों को अगर लड़की  पसंद आ जाएऔर वह आगोश में आने को सहज ही राज़ी न होतो यह तरीका बेहद मुफीद लगता है। अब हमारे-आपके लिए दिक़्कत ये है कि इसमें थाने के जूते और हवालात की लात का भय होता है। लड़की के निकट बंधुजन आपको दचक कर कूट भी सकते हैं। तो इस उपाय में थोड़ा एहतियात बरतने की ज़रूरत है।

वैसे हम भी मानते हैं कि समाज में प्रेम तब तक पनप नहीं सकता जब तक प्रेम की  अभिव्यक्ति के सबसे डायरेक्ट एक्शन पर से रोक नहीं हटती। वरना संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क्या मायने है भला।

इसके साथ ही कई अन्य तरीके हैंवीपीपी से अभिमंत्रित अंगूठी मंगाने का जिसमें दावा  किया जाता है कि सात समंदर पार बैठी प्रेमिका भी आपकी गोद में पके गूलर की  तरह गिर जाएगी। या फिर वशीकरण मंत्र का जिसमें एक खास जड़ी को घिसकर तिलक लगाने से सुंदर से सुंदर लड़की भी आपके वश में आ जाएगी। 

खत लिखने का तरीका भी ज़्यादा पॉपुलर है। खतों को अधिकतर लोग पेन से लिखते हैं। कुछ लोग इसे लहू से लिखते हैं। कुछ उत्तर-आधुनिक प्रेमी तो मुर्गे आदि के खून का इस्तेमाल करते हैं। कुछ सिर्फ जताने के लिए लाल स्याही से लिखते हैं और साथ में ताकीद भी करते हैं- लिखता हूं अपने खून से स्याही न समझना। प्रेमियों को कम मत समझिए। 

अगर आपने प्रेम पत्र दिया और उसमें दो-चार कविता या शायरी डाल दीतो समझो  धूल में पड़ी सड़ रही सरकारी फाइल पर अपने रिश्वत का पेपरवेट डाल दिया है।  कविता भी कैसी जिसे तू ये तो मैं वो  की तर्ज पर लिखा जाता है। इन कविताओं  में प्रेमी अमूमन माटी का गुड्डा और पेड़ के नीचे रहने वाला मजनू  होता है और माशूक सोने की गुड़िया वगैरह। 

तो खत का ज़्यादा मजमून  जानने की बजाय दो-चार पन्नो का रसधारयुक्त पत्र लिख डालिएमुंह पर रोतडू  भूमिका चिपकाइए, दो हफ्ते तक शेव मत कीजिए..आप पक्के प्रेमी दिखेंगे। होना न होना आपके ऊपर है, हम दिखने की सलाह दे सकते हैं। चेहरे अपनी क्षमता के मुताबिक देवदासत्व ओढ़कर ही आप सच्चे प्रेमी हो सकते हैं। हालांकि नए जमाने की लड़कियों को डोले-शोले पसंद आते हैं। और हां, साथ में कैमरे वाला मोबाइल फोन ज़रूर धारण करें। वक्त-बेवक्त काम आएगा। आपका पर्स भी भारी-भरकम होना चाहिए..महर्षि मार्क्स ने तो बहुत पहले उचार दिया था,  प्रेम रूपांतरित आर्थिक संबंध हैं। तो अगर आप प्रेम करना चाहते हैं, तो बीपीएल न रहे। एपीएल हो जाएं। गरीबी रेखा वालों के लिए तमाम सरकारी योजनाएं हैं, और उनमें से कोई भी प्रेम के लिए समर्पित नही है।

एक बात और जो याद आ रही  है वह ये कि महर्षि मार्क्स पेट की बात करते थे..बाबा फ्रायड उससे थोड़ा नीचे उतरे। प्रेम के शाश्वत परिणाम की बात करते रहे फ्रायड चचा। निदा फाजली ने भी एक नज़्म लिखी है-

सरकारी मकानों की तरह,
हर लड़की का भी
होता है एक नंबर,
कोई भी दरवाजा खटखटाओ
रास्ता सीधे बेडरूम पर खत्म होता है।।

सावधान। ये मेरी नही...निदा साब की पंक्तियां है। सोच समझ कर अमल में लाएं। ये वैधानिक चेतावनी है। तो बात घूम कर वही पहुंची, जहां से शुरू हुई थी। प्रेम के मार्ग में शरीर उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना सनातम धर्म में सगुण उपासना। और इस उपासना में शिलाजीत वगैरह की महती भूमिका है। 

वैसे अगर आप दिल्ली से हावड़ा की ओर जाएं या मुंबई की ओर, पटरी के दोनों ओर दीवारों पर मोटे-मोटे हरफो में हकीमों-वैद्यों के इश्तहार यही ताकीद करते नजर आते हैं कि हमारे देश के आधे से ज्यादा मर्द या तो शीघ्रपतन के शिकार हैं, या फिर उनका अंग टेढा है। या तो उनका बचपन कुसंगतियों में गुजरा है, या फिर उनके सीमेन में शुक्राणु निल है। अब अपने देश की 1 अरब 21 करोड़ की आबादी क्या हमने नेट से डाउनलोड की है?

तो प्रेम में शरीर की भूमिका बहुत खास बल्कि पर्याप्त या यूं कहें कि पर्याप्त से भी ज्यादा है। मैं उस शरीर की बात कर रहा हूं, जो हिंदी का है। और जिसके साथ उर्दू वाला शरीर हुआ जाता है।

कुछ ऐसे विज्ञापन मिलते रेल पटरियों के किनारे 
इस कतोपकथन का तात्पर्य यह है कि सिर्फ पार्क में बैठकर बोगनवेलिया के पत्तो पर उसका नाम लिखते हुए आप कामयाब प्रेमी कत्तई नही बन सकते...अलगनी पर टंगे हुए कप़ड़े देखकर संतोष करने वाले भी देखते रह जाते हैं..तो आपको कई किस्म के जुगाड़ करने होंगे।


जुगाड़ के बाद अगर प्रेम चल निकले तो शर्त यह भी है कि सुमिरनी फेरने की तरह ही आपको रोजाना 108 बार देवी के महात्म्य का स्रोत पाठ करना होगा। कर पाए तो आप पर मेहरबानी वरना आप बनेंगे फिल्म तेरी मेहरबानियां  के केंद्रीय...चरित्र। जय हो!


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Thursday, December 30, 2010

क्यूँ बार-बार होता है प्यार!!!

विवेक आनंद 
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं)
उस वक्त शायद मैं चौथी क्लास में रहा होऊंगा हम तीन लोगों का एक ग्रुप था मैं और मेरे साथ दो लड़कियां हम सारे काम एकसाथ ही करते थे... टिफिन खाने और होमवर्क करने से लेकर छोटी-मोटी शैतानियाँ तक सभी में तीनों का बराबर का हिस्सा होता था उस दिन सिग्नेचर को लेकर बात चल रही थी वो पेंसिल से अपने सिग्नेचर बनाकर दिखा रही थीं मेरी बारी भी आई लेकिन पता  नहीं क्यों... मैंने कहा कि मैं तुम्हें कल अपना सिग्नेचर दिखाऊंगा उस दिन मैं घर गया... और बड़े प्यार से एक कार्ड बनाया कलर पेंसिल से पहले पन्ने पर कुछ सुंदर से फूल और भीतर के पन्ने में बड़े-बड़े और सुंदर अक्षरों में लिखा... I LOVE YOUदूसरे दिन फिर सिग्नेचर की बात उठी मैंने दोनों में एक लड़की, जो मुझसे कुछ ज्यादा घुली-मिली थी, उसे वो कार्ड दे दिया कार्ड के भीतरी पन्ने पर लिखे जज़्बात देखते ही वो भड़क गई बोली, तुम यही सब करते हो, रुको मैं प्रिंसिपल मैम से शिकायत करती हूं मेरी तो हवा निकल गई, समझ में नहीं आया कि मैंने ये क्या कर दिया? पूरे दिन सांस अटकी रही खैर उसने शिकायत प्रिसिंपल मैम से न कर मेरी दीदी से की जो कि हमारी सीनियर भी थीं उसके बाद ग्रुप खत्म, बातचीत बंद तकरीबन एक साल बाद उस स्कूल में वो मेरा आखिरी दिन था आखिरी दिन के आखिरी पीरियड में वो मेरे करीब आई हमें पढ़ने के लिए लाइब्रेरी से कुछ किताबें मिली थीं उसने बस इतना पूछा, जरा देखूं तुम्हें कौन सी किताब मिली है


ऐसा क्यूं होता है बार-बार 
लंबा अरसा बीत गया लेकिन ये बात मुझे बिलकुल ठीक से याद है। याद करके अच्छा लगता है, हंसी आती है कि उस छोटी सी उम्र में भी मेरे पास एक नन्हा सा दिल था। हर किसी की जिंदगी में ऐसे अनुभव होंगे। कुछ इसी तरह के प्यारे अहसास वाले लम्हें होंगे फिर हम जिंदगी में आगे निकल जाते हैं। फिर कोई मिलता है और हमें अच्छा लगता है। वो हमें भी पसंद करे तो अच्छी बात है, न करे तो हम परेशान होते हैं। कुछ उल्टे-पुल्टे काम करते हैं। जिंदगी फिर हमें कहीं और ले जाती है और यादों की पोटली में ऐसे अनगिनत लम्हें संजो जाती है। हम पीछे मुड़कर उन पलों को याद करते हैं। जो भी हो...एक अच्छा अहसास ही होता है। अपनी बेवकूफी पर हंसी आती है। अपनी उल्टी-पुल्टी हरकतों को याद कर हम मुस्कुराते हैं। यही तो है वो अहसास। अब इसे प्यार कहें... आकर्षण कहें... या दिमाग का कोई केमिकल लोचा। ये बार-बार होता है और जितनी बार हो... अच्छा है।


जिंदगी जब कभी बोझिल लगने लगती है, जब टेंशन ज्यादा होने लगता है तो  ऐसी यादें ही हमें तरोताजा कर जाती हैं। इसलिए ऐसी यादें जितनी ज्यादा होंगी उतना ही ये यकीन रहेगा कि हमने अपनी जिंदगी को भरपूर जीया है। हमने खूब प्यार किया है। बेकार की बात है जो कहते हैं कि प्यार जिंदगी में सिर्फ एक बार ही होता है। प्यार तो कई बार होता है। यहां तक कि एक के प्यार में होने के बावजूद किसी और से हो सकता है।


दिल तो बच्चा है जी...
लंदन में एक दिलचस्प रिसर्च की गई प्यार पर। नतीजों से ये बात सामने आई कि दिल पर एतबार करना सचमुच मुश्किल है। किसी एक पर दिल आ जाने के बाद भी ये न फिसले, कहना आसान नहीं  है। यहां तक कि एक सच्चे जीवनसाथी के हासिल हो जाने के बाद भी दिल के फिसलने की कम गुंजाइश नहीं रहती। एक प्यार मिलने के बाद भी दिल किसी और किसी के लिए भी धड़क सकता है। और ऐसा हर पांचवे व्यक्ति में एक के साथ हो सकता है। चाहे वो आदमी हों या औरत। उनका ये प्यार दफ्तर में काम करने वाले/वाली से हो सकता है, अपने दोस्तों में किसी एक से हो सकता है और जो लोग अपने जीवनसाथी से पूरी तरह खुश हैं... वो भी ऐसे प्यार में पाए गए हैं। ‘जब वी मेट’ को याद करिये. शाहिद से करीना कहती है...प्यार में कुछ सही-गलत नहीं होता।


सर्वे में 50 फीसदी लोगों ने ये माना कि उनके दिल में अपने जीवनसाथी के अलावा भी किसी और के लिए गहरी भावनाएं हैं और लोग इसे गलत भी नहीं मानते। छह में एक शख्स ने ये माना कि प्यार हासिल हो जाने के बाद भी अगर उनका दिल किसी के लिए धड़कता है तो वो अपने दिल की आवाज को सुनेंगे। शोध में ये भी पता चला कि आमतौर पर किसी दूसरे के लिए इस तरह की फीलिंग्स तीन-साढ़े तीन साल तक टिकती हैं।



रिसर्च लंदन की है इसलिए हो सकता है कि सर्वेक्षण के नतीजे हर जगह के लिए एक से न हों लेकिन इतना तो माना ही जा सकता है कि दिल के मामले थोड़े पेंचीदा होते हैं। भावनाओं को काबू करना सबसे मुश्किल है और भावनाएं किसी के लिए हों तो इसमें गलत क्या है? हम उस अहसास को सिर्फ एक बार क्यों जीएं? प्यार बार-बार हो तो क्या बुरा है


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Tuesday, December 7, 2010

मन मत मारो, हमारी सलाह मानो...

मंजीत ठाकुर 
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र और डीडी न्यूज़ में वरिष्ठ संवाददाता हैं)
सुना तो नाम बहुत था मुहब्बत का..लेकिन निकला वही। बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, काटा तो कतरा-ए-ख़ूं न निकला की तर्ज पर। आजकल लोग ब्लॉग पर भी प्रेम को लेकर बेहद भावुक हो रहे हैं। 


वैलेंटाइन डे दो महीने ही दूर है। लड़कियां लड़कों की और लड़के, लड़कियों की तलाश में ज़ोर-शोर से भिड़े हुए हैं। 


महर्षि वैलेंटाइन का दिवस मनाना ज़ोर पकड़ रहा है। जिन्हें जोड़ा हासिल नहीं हो पाता. वो  अपनी खीझ निकालते हैं- अपसंस्कृति, अश्लीलता चिल्ला-चिल्लाकर। दरअसल, दोष इस पीढी का नहीं। जनाब दोष तो उस पीढी का भी नहीं। 


उन्हें पता है कि उम्र के एक खास मोड़ तक आदमी इसी ग़लतफहमी में पड़ा रहता है कि उसका भी एक-न-एक दिन कहीं-न-कहीं किसी न किसी से यक-ब-यक प्यार हो जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे आस-पड़ोस की लड़कियां धड़ाधड़ अन्य लोगों की बांहों इत्यादि में जाने लगती हैं, तो उसे यह तत्वज्ञान होता है कि प्रेम होता नहीं, वरन् बेहद कोशिशों के बाद किया जाता है। इसके लिए कई दोस्तों को फील्डिंग करनी होती है। और हां , ये प्यार को खींचना जिसे अच्छी भाषा में निभाना कहते हैं, वह भी बेहद कठिन क्रिया होती है क्योंकि इसमें कलदार खर्च होते हैं। बहरहाल, मित्रों के मर्म को न छूते हुए मैं लड़कियों को अपने प्यार में गिरफ्तार करने, या उन्हें प्यार में डालने या लुच्चो की भाषा में पटाने के कुछ ऐसे तरीकों पर प्रकाश अर्थात लाइट डालने की हिमाकत करूंगा,  जिसे कई मनीषियों ने अपने अर्जुन टाइप बेहद निकट शिष्यों को बताया है।


क्या पता आपकी भी बन जाए जोड़ी...
पहला तरीका तो यही है, कि उस लड़की के, जिसे आप पिछले तीन महीनों से प्यार कर रहे हैं और उसे अभी तक इस बात का पता भी नहीं है, उसके घर के चक्कर लगाना शुरु कर दें। प्यार के मामले में लड़कियों वाली गली को महबूब की गली,  प्यार की गली,  यार की गली, तेरी गली जैसे बेहद मुकद्दस नामों से नवाजा जाता है।


बशीर बद्र की एक पंक्ति याद आ रही है-  

हम दिल्ली भी हो आए हैं, लाहौर भी घूमे 

यार मगर तेरी गली,  तेरी गली है।


भले ही उस गली में आड़ी-तिरछी नालियों का जाल बिछा हो, बदबूवाली बयार उस गली में बह रही हो, नालियों में सुअर लोट रहे हों  और एक बार काजल की कोठरी की तरह गली में घुसे तो पैर अति-पवित्र गोबर से सनकर ही वापस, आएंगे। फिर भी यार की गली तो यार की गली ही है। 


हो सकता है कि आपको लड़की दिख जाए, या फिर आप जैसे महान प्रेमी को लड़की के कपड़े सूखते दिख जाएं तो भी आप संतोष ही करेंगे। लेकिन इसमें कठिनाई ये है कि इसमें कई चक्कर लगाने पड़ सकते हैं  और आप काया से बम खटाखट हैं। अगर आप सारी ऊर्जा यार की गली के चक्कर लगाने में ही खर्च कर देंगें तो फिर प्यार हो जाने के बाद होने वाली अंतरंग क्रिया के लिए ऊर्जा कहां से लाएंगे। जबकि शिलाजीत इत्यादि बेचने वाले महान विद्वानों का कहना है कि इस काम में घोड़े के बराबर ऊर्जा की दरकार होती है। 



प्रेम वैलेंटाइन दिवस का मोहताज नहीं होता। हमारे यहां यह क्रिया-कलाप बहुत दिनों से संपन्न किया जाता रहा है। अब जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि आप पड़ोस की बिल्लो रानी पर अरसे से आसक्त हैं और यह बात उन्हें पता भी नहीं है। तो कुछ ऐसा कीजिए कि बिल्लो आप पर रीझ जाएं,-

गलती होने पर पिटाई की भी गुंजाइश 
ऐसा कीजिए कि गले में लाल या ऐसे ही किसी रंग का - जो आंखों में बरछी की तरह चुभ सके- रुमाल गले में बांध लें। फिर उपर से आंखो पर काले रंग का चश्मा। वल्लाह, क्या कहने..। लोगबाग कहते ही होंगे कि काले चश्मे में आप अक्षय कुमार की तरह बंबास्टिक दिखते हैं। तो इसी ड्रैसअप के साथ आप फैशन परेड मे शामिल होइए.. और प्रेम गली के दो-चार चक्कर मार आइए। 


दूसरा तरीका ये है कि लड़की को एकटक देखते रहिए। कभी-न-कभी वह भी आपकी ओर देखेगी। जैसे आंखें मिले आप अपनी दाईं या बाईं ओर की आंख दबा दें। इसे आंख मारना कहते हैं। आपके आंख दबाते ही लड़की आपका पापी मंतव्य समझ जाएगी। हां, इस विधि में खतरा ये है कि लड़की तक अगर आपका मंतव्य पहुंच नहीं पाया,  यानी कुछ कम्युनिकेशन गैप हो जाए, तो लड़की आपको काना या भैंगा समझ सकती है। और हां, काला चश्मा पहन कर भी ये क्रिया संपन्न नहीं की जा सकती।


एक अन्य तरीका यह है कि लड़की जब भी घर से निकले,  यानी घर से कॉलेज तक या स्कूल तक, या फिर ट्यूशन को ही निकले तो आप भी उसके पीछे लग लो। फायदा यह कि या तो आप घर से कॉलेज के बीच कहीं पिट-पिटा जाएंगे,  जो कि प्यार की कठिन राह में बड़ी मामूली बात है, या फिर दो-चार दिनों में लड़की यह जान जाएगी कि यह जो रोज़ मेरे पीछे कुत्ते की तरह आता है,  मुझसे प्यार करता है। इस तरह या तो आप का गठबंधन यूपीए की तरह चल निकलेगा  और आप अभूतपूर्व प्रेमी का खिताब पा जाएगे  या फिर भूतपूर्व। 

वैसे ये सब न चलें, तो कुछ दूसरे तरीके भी है, जिनकी चर्चा फिर कभी करूंगा। कुछ डायरेक्ट ऐक्शन तरीके हैं, कुछ अंगूठियों का कमाल।

जारी...  .


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Sunday, December 5, 2010

अब प्यार को मिल गईँ आंखें

विवेक आनंद 
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं)
बड़ी पुरानी कहावत है  कुछ पुराने प्रेमची कह गए हैं प्यार अंधा होता है कब, कहां, किससे हो जाए, कहा नहीं जा सकता बस दिल में एक हूक सी उठती है और सबकुछ धुआं-धुआं सा हो जाता है फिर कुछ दिखाई नहीं देता महबूब आड़ा-तिरछा कैसा भी हो... दुनिया में सबसे खूबसूरत दिखता है। आंखें भैंगी ही क्यों ना हो... लेकिन वही झील सी दिखती है बस उसी में डूब जाने को दिल करता है बॉबकट वाली बाला क्यों ना हो, उसके वही गेसू आसमान की काली घटा से दिखते हैं पुराने प्रेमची कह गए हैं कि दिल लगी दीवार से तो परी क्या करे’ लेकिन हकीकत में ऐसा होता है क्या?


पुराने प्रेमचियों की कही बात पर भरोसा नहीं होता ऐसा होता कहां है? मुझे तो इसमें शक है मुझे तो लगता है कि प्यार बड़ा सोच समझकर किया जाता है, अच्छी तरह से आंखें खोलकर, देखभाल कर किया जाता है दीवार से दिल नहीं लगता, दिल तो परी पर ही आता है मेरा पर्सनल एक्सपीरियंस तो यही कहता है अब अगर किसी को मेरे प्यार पर शक हो तो ये अलग बात है लेकिन सच्चे दिल से मैं इतना दावा तो कर ही सकता हूं कि मेरा प्यार भी 100 फीसदी डबल फिल्टर्ड प्यार था लेकिन कमबख्त ने उस प्य़ार की वैल्यू ही नहीं समझी शायद उसने भी मेरी तरह आंखें खोल रखी थीं अब परी को भी तो कोई कॉम्पिटेंट आइटम चाहिए


बिन पैसे हम न होंगे तेरे !!!
मेरा पर्सनल एक्सपीरियंस कहता है कि मैं चाहे कितना भी बदसूरत रहा हूं, मैंने हमेशा परी टाइप आइटम ही ढूंढ़ी, आंखें खोलकर जो प्यार किया था ये अलग बात है कि उस वक्त मैं पुराने प्रेमचियों  की कही बात की दुहाई ही दिया करता था... जैसे, प्यार कैसे हुआ... कब हुआ... पता ही नहीं चला... बस लगा कि यही है मेरे लिए परफेक्ट आइटम... और फिर आंखों में ख्वाब तैरने लगे... कि बस, अब तो इसके अलावा किसी और को देखूंगा भी नहीं... लेकिन ये कहां पता था कि वो भी अपने लिए परफेक्ट आइटम ढूंढ़ रही थी


वो मेरे साथ ही पढ़ती थी कुछ मजबूरियों की वजह से हम करीब आए और मुझे प्यार हो गया परी से कम नहीं थी वो, आंखें खुली रखकर जो प्यार किया था इसलिए दीवार से दिल लगाने का चांस ही नहीं था हमने साथ-साथ वक्त गुजारा, लंबे अरसे तक साथ रहे, लगा कि पब्लिकली वी आर द बेस्ट फ्रेंड्सकहना तो लड़कियों की आदत होती है मामला तो जम ही जाएगा लेकिन जब लगा कि अब काफी वक्त हो चुका है और अब तो इज़हार-ए-मोहब्बत के बिना काम नहीं चलने वाला तो मामला ही उल्टा हो गया फिर तो सारा प्यार हवा-हवाई हो गया मामला फुस्स...दिल टूट गया मेरा...और खुद को संभालने के लिए मैंने पूरी शिद्दत से पुराने प्रेमचियों के नुस्खे अपनाए रो-रोकर बाल्टी भर दी जो अब तक देखा सुना था वही सब हुआ मेरे साथ कुछ भी नया नहीं हर जगह उसकी ही तस्वीर नज़र आने लगी हसीन लम्हों की याद दिल से उतरती ही नहीं थी कुछ दिनों बाद पता चला कि उसका मामला फिक्स हो गया है बिल्कुल कॉम्पिटेंट आइटम ढूंढ़ा था उसने उसने भी दीवार से दिल लगाने का चांस नहीं लियाबिल्कुल आंखें खोलकर अपने लिए सही आइटम का चुनाव किया यकीनन मेरे से ज्यादा काबिल था... हर लिहाज से... बाद में मुझे ये अहसास भी हुआ कि उसने बिल्कुल सही कदम उठाया था...


दिल तो बच्चा है जी... 
मेरी एक दोस्त है उसने भी लव मैरिज की है एक दिन उसकी प्रेमकहानी सुनी...वो भी परी टाइप आइटम है इसलिए उसके सामने भी मेरे जैसे आंखें खोलकर प्यार ढूंढ़ने वालों की कमी नहीं थी कई ऑफर आए उसे लेकिन उसे भी पुराने प्रेमचियों के अंधे प्यार पर भरोसा नहीं था आंखें खुली रखी थी उसने उसे भी किसी कॉम्पटीटेंट आइटम की तलाश थी अचानक एक दिन सोशल नेटवर्किंग साइट पर उसकी नजर एक आइटम पर गई पहले दोनों नेट फ्रेंड बने फिर एक-दूसरे को जाना समझा मैचिंग लेवल देखा फिर एक-दूसरे के साथ वक्त बिताना शुरू किया लेकिन इन सबके बीच न उसके दिल में धुआं उठा... और ना ही कोई हूक वगैरह का चांस बना जब उसे लगा कि मामला जम सकता है तो फिर बाकायदा उसने अपने आइटम के घर की रेकी की घरवालों से जाकर मिली और तब जाकर शादी का फैसला लिया अब मुझे लगा कि इसमें प्यार कहां से हुआ? दोनों ने प्यार थोड़े ही किया बस सोच-समझकर शादी की तब जाकर उसने मुझे समझाया कि दोस्त ऐसे ही होता है पुराने जमाने के प्रेमचियोंकी कही बात को सीरियसली मत लो अब ज़माना आगे निकल चुका है कहां पड़े हो तुम?



सच बात है... अब पुराने प्रेमचियों की कही बात की कोई वैल्यू नहीं रहीऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे खुद में कई और गिना सकता हूंकई और किस्से बता सकता हूं...इसलिए कहता हूं कि प्यार अब अंधा नहीं रह गया है...प्यार को आंखें मिल गई हैं

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