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Friday, January 28, 2011

Why govt’s defence of CVC does not hold much water

RAJIV KUMAR
(Writer is Associate Producer in Headlines Today)
The Government has come out with a bizarre defence of beleaguered CVC (Chief Vigilance Commissioner) PJ Thomas. In a shocking disclosure, the Govt. told the Supreme Court that it was not aware of charges against Thomas in the Palmolien Oil import scam.
As far as I know, before the appointment of any candidate to the exalted office, the EMPANELMENT COMMITTEE (EC) forwards the name of potential candidates to the Top committee, which includes the PM, Finance Minister and the Leader of Opposition.

The EC, in-turn, before recommending the names, consider three points, which are


1. Who is the senior most candidate?
2. His record from Ministry of Personnel (MoP). (Experience; taint, if any).
3. A check of his antecedents by the Intelligence Bureau. (Crime record; cases, if any)
Only after being satisfied that all the above three parameters are met, the EC recommends the candidate for further perusal to the Top Committee.

Now the questions to be raised are:

Mr. Thomas are you ready to go???

1. Did PJ Thomas’s record with MoP fail to mention the fact that he was involved in the Palmolein oil import scam?

2. How did the IB fail to report that PJ has a taint on his career?

3. Sushma Swaraj is on record saying that she “brought this fact to the notice of Prime Minister and Home Minister in the meeting.”

Why then, did the Govt. override Opposition Leader’s objection? These are many of the few questions the Govt. need to answer to the nation. Its affidavit in the apex court that Thomas is an "outstanding officer of impeccable integrity” does not hold much water in the eyes of the public; let alone the SC, which definitely has more wisdom and prudence. The UPA Govt. must understand the fact that India cannot afford to have a ‘sacrosanct’ head of top surveillance watchdog (CVC) vouching for his integrity in the apex court.


NOTE: TOP COMMITTEE
(a) The Prime Minister - Chairperson;
(b) The Minister of Home Affairs - Member;
(c) The Leader of the Opposition in the House of the People - Member.



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Friday, December 31, 2010

हमारी प्यारी चवन्नी!!!

विवेक आनंद 
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं)
मेरी प्यारी चवन्नी...सरकार ने तुम्हें गैरज़रूरी मान लिया है कुछ महीनों बाद तुम सिर्फ यादों में रह जाओगी किसी संग्रहालय की सुनहरे कब्र में दफना दी जाओगी  लोग आएंगे और तुम्हें याद करेंगे कि कैसे-किसी वक्त तुम्हारी भी हुकूमत चलती थीतुम्हारी कीमत इतनी थी कि राजा लोग भी दिल मांगने के लिए तुम्हें उछालते थे तुम्हारी जवानी वाले उन दिनों के बारे में मुझे हाल ही में पता चला, जब मैंने वो गाना सुना कि ‘राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के’...कैसा सुनहरा वक्त रहा होगा वो जब तुम्हारे बदले दिल का सौदा किया जाता रहा होगा एकबारगी अपनी हथेलियों पर तुम्हारे नर्म स्पर्श की याद ताजा हो आई बड़े बुजुर्गो से भी सुना था तुम्हारे यौवन के दिनों के बारे में, जब तुम्हारे बदले में एक सेर घी मिला करता था और एक थान कपड़ा भी मिल जाता था दादी अपने कितने ही किस्सों में तुम्हारा जिक्र करती थीं कैसी चमक आ जाती थी उनके चेहरे पर जब भी वो तुम्हारे बारे में बतातीं... तुम्हारी ढलती उम्र की बड़ी फिक्र थी उन्हें और मैं तो बस उनकी बातें हैरत से सुना करता थासोचा करता...अच्छा... तुम कभी इतनी भी जवान थीं  

अब यादों में रह जाएगी चवन्नी 
बचपन की कितनी ही यादें तुम्हारे साथ जुड़ी हैं तुम मेरे पास रहो या ना रहो, तुम्हारी वो यादें तो हमेशा ही  मेरे साथ रहेंगी दादी कहती थीं कि बचपन से ही मैं तुम्हारे मोहपाश में बंधा था तुम्हारा सुनहरा रंग मुझे बहुत पसंद था उस वक्त मुझे कहां समझ थी कि मैं तुम्हारा मोल समझ पाता दादी की हथेलियों पर 10-20 पैसों के बीच तुम शरमाई से पड़ी रहती...और मैं तुम्हें झट से उठा लेता... तुम्हारे स्नेह बंधन में ऐसा बंधा था कि दादी को डर लगा रहता... कि मैं तुम्हें निगल ना लूं

जब तुम्हारा मोल समझने की उम्र हुई,  तब भी तुम मेरे सबसे करीब थी मैं तो इतने भर में खुश रहता था कि तुम मुझे पांच खट्ठी-मीठी गोलियां दे जाती हो तुम्हारे बदले मुझे सुनहरे रैपर वाली एक बड़ी टॉफी मिल जाती है, जो उस वक्त बड़ी मुश्किल से पूरे मुंह में आ पाती थीवो  खट्टा-मीठा चूरन मुझे कितना पसंद था एक पूरा का पूरा पैकेट तुम दे जाती थी कितने प्यारे दिन थे वो तुम्हारे... और मेरे भी स्कूल के गेट एक बूढ़े बाबा बैठा करते थे अपनी टोकरी में ताज़े खीरे-ककड़ी और कागजी नींबू लेकर मैं अक्सर तुम्हारे बदले में खीरा या ककड़ी लेता था रिक्शे पर बैठकर स्कूल से घर की पांच किलोमीटर की दूरी तय करता थाअपनी बहनों के साथ रास्ते भर में भी सारे खीरे औऱ ककड़ी खत्म नहीं कर पाता था जेबखर्च में मम्मी तुम्हें ही दिया करती थीं और मुझे तुमसे ज्यादा कुछ चाहिए भी नहीं था क्या-क्या याद करूं तुम्हारे बारे में अपने पेंसिल बॉक्स में कितना सहेज कर रखता था तुम्हें...और मेरी गुल्लक में तो सिर्फ तुम ही रहती थी
जैसे-जैसे बड़ा होता गया, दुनियादारी की समझ मुझमें भी ठूसी गई तुम्हारी ढलती उम्र की मुझे बार बार याद दिलाई गई अब मैं भी मम्मी से जिद करने लगा था, बोलता- अब तुममें वो बात नहीं रह गई थी...मेरी हथेलियां भी तो बड़ी हो गईं थीं और जरूरतें भी लेकिन कभी भी बचपन के तुम्हारे साथ को नहीं भूल पाया...अभी तक याद है। सच्ची!

कभी खूब जलवा था चवन्नी  (25 पैसे) का 
लोग तुम्हें भूलने लगे थे तुम्हें मुहावरों में गढ़ा जाने लगा था एक दिन किसी दोस्त ने कहा, बड़ी चवन्नी मुस्कान ले रहे हो चवन्नी मुस्कान का मतलब समझा तो अच्छा लगाचलो किसी न किसी बहाने तो तुम्हें याद किया जा रहा था अब मेरी मुस्कान में भी तुम थी लेकिन उस वक्त मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जब मैंने ये जाना कि लोग कमतर चीजों को चवन्नी छाप कहने लगे हैं। चवन्नी छाप लड़का...चवन्नी छाप फलां...चवन्नी छाप फलां। आज सुबह ही तो एफएम रेडियो पर सुन रहा था. "ये क्या मेड के आने पर तुम्हारी चवन्नियां ज़मीन पर गिरने लगती हैं।" लोग तुम्हें हिकारत की नजरों से देखने लगे थेलोगों के लिए धीरे-धीरे तुम गैरज़रूरी होती जा रही थी बाजार में तुम्हारी कोई साख नहीं रह गई थी


अभी कुछ दिन पहले ही तुम कहीं से अचानक मेरी जेब में आ गई थी मैंने तुम्हे बड़े गौर से देखा और सहेज कर रख लिया। अब तुम हमेशा मेरे पास रहोगी चवन्नी। धीरे धीरे लोग तुम्हें भूल जाएंगे लेकिन मैं तुम्हें कहां भूल पाऊंगाकहां भूल पाया उन खट्टी-मीठी गोलियों का स्वाद, चटपटे चूरन का मज़ा, कहां भूल पाया उस बूढ़े बाबा की वो आवाज.जो मेरी गली में आवाज लगाया करते थे, चार आने का आइसक्रीम। आई लव यू चवन्नी.... :-(

Thursday, December 16, 2010

क्या बची रहेगी करुणानिधि की कुर्सी?

मनोज मुकुल
(लेखक आईआईएमसी] नई दिल्ली के पूर्व छात्र और स्टार न्यूज़ में एसोसिएट सीनियर प्रोडयूसर हैं)
तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव समय से पहले मुमकिन हो सकते हैं। स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर इस वक्त कांग्रेस और डीएमके के रिश्तों में जो दरार पड़ी है उसका नतीजा समय से पहले राज्य में चुनाव के संकेत दे रहे हैं। शनिवार को चेन्नई में डीएमके कोर कमेटी की बैठक हो रही है। बहुत मुमकिन है कि डीएमके केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लें। हालांकि दिल्ली सरकार से समर्थन वापस लेने की सूरत में मनमोहन सरकार पर कुछ खास असर नहीं पड़ेगा और मनमोहन जुगाड़ के सहारे पीएम बने रहेंगे।
जाने कहां गए वो दिन...
डीएमके के कुल 18 सांसद हैं जो इस वक्त यूपीए सरकार में शामिल होकर समर्थन दे रहे हैं। करुणानिधि की घोर विरोधी और पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के पास 9 सांसद हैं जो जरूरत पड़ने पर मनमोहन का साथ देने को तैयार बैठी हैं। हालांकि बहुत मुमकिन है कि शनिवार को डीएमके कोर कमेटी की मीटिंग के किसी फैसले से पहले कांग्रेस वहां करुणानिधि सरकार से समर्थन वापस ले लें। चेन्नई की सरकार करुणानिधि कांग्रेस की बदौलत चला रहे हैं। करुणानिधि के पास स्पीकर सहित 100 एमएलए हैं और कांग्रेस के पास 36. सरकार बचाने के लिए तमिलनाडु विधानसभा में बहुमत चाहिए 118 (234) का । हालांकि नीचे के आंकड़े को देखे तो सरकार बचाने की कोशिश अगर होती है तो ज्यादा परेशानी नहीं होगी। क्योंकि लेफ्ट के 15 विधायक लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस की वजह से करुणानिधि से दूर गए थे, हो सकता है कांग्रेस के अलग होने के बाद और नए समीकरण में ये फिर से करुणानिधि के पाले में लौट आएं। लेफ्ट के साथ आने से करुणानिधि की सरकार तो बच जाएगी लेकिन चुनाव से ठीक पहले राज्य में नए समीकरण जन्म लेंगे।
DMK+ @ AIADMK @ OTHERS
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DMK 100 @ AIADMK 57 @ PMK 18
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INC 36 @ CPM 9 @ DMDK 1
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VCK 2 @ CPI 6 @ Ind 1
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***** MDMK 3 @ Ind 1
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TOTAL 138 @ 75 @ 21
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2007 @166 @ 66 @ 2
करुणानिधि की बेटी कनिमोझी के करीब तक पहुंच गई है सीबीआई की टीम। मतलब साफ समझा जा सकता है कि सीबीआई अब करुणानिधि के परिवार के पीछे पड़ चुकी है। ए राजा को करुणानिधि का दत्तक पुत्र माना जाता है। स्पेक्ट्रम घोटाले में नाम आने के बाद इस्तीफे को लेकर जो दबाव की राजनीति हुई उससे सिर्फ कांग्रेस या मनमोहन ही नहीं पूरा देश वाकिफ है। ए राजा की कुर्बानी करुणानिधि नहीं चाहते थे। राजनीति के जानकार और इस परिवार को करीब से समझने वाले बताते हैं कि कनिमोझी और ए राजा को कोई कनेक्शन भी है। जिसको लेकर करुणानिधि को कई बार मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा है। लेकिन परिवार प्रेम में करुणानिधि ज्यादा अंधे हो चुके हैं और उन्हें सही गलत का अंतर नहीं दिख रहा। मामला घर में घुस चुका है इसलिए इज्जत और गद्दी किसी न किसी की कुर्बानी तो देनी ही पड़ेगी।
पब्लिक सब जानती है
वैसे भी कांग्रेस से दूरियां तो लगातार बढ़ रही थी इसके संकेत लगातार राहुल गांधी देते रहे हैं। राहुल लोकसभा चुनाव के बाद तीन-चार बार तमिलनाडु हो आए लेकिन करुणानिधि से राम-सलाम भी नहीं हुआ। साल भर पहले करुणानिधि दिल्ली आए थे तो अपने लोगों के लिए मंत्रिमंडल का कोटा सेट कर लौट गए, तब से उनकी दिल्ली दरबार में किसी से मुलाकात भी नहीं हुई है। पिछले दिनों अलागिरी के घर शादी में प्रधानमंत्री, सोनिया या राहुल में से कोई नहीं गया। प्रणब मुखर्जी गए थे माहौल समझने के लिए। कहने का मतलब ये कि संकेत तो समय समय पर मिलते रहे हैं, लेकिन असली समय का ही इंतजार हो रहा है।
पिछली बार जब करुणानिधि वोट मांग रहे थे तब कहा गया था कि ये उनका आखिरी चुनाव है, अगले चुनाव में विरासत अगली पीढ़ी को पूरी तरह सौंप देंगे। लेकिन जो हालात बन गए हैं उनको देखकर नहीं लगता कि इस बार भी वो अपना असली वारिस चुन पाएंगे। वैसे भी स्टालिन और अलागिरी के बीच संबंध ठीक होने से रहे। कनिमोझी कनेक्शन ने मामला और खराब किया है लेकिन क्या पता, फैसला जनता को करना है, जो हर वक्त नैतिकता के तराजू पर सब कुछ नहीं तौलती।