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Monday, January 3, 2011

डायरेक्ट एक्शन प्रेम

मंजीत ठाकुर 
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र और डीडी न्यूज़ में वरिष्ठ संवाददाता हैं)
आजकल कई लोग लव गुरु होने पर उतारू हैं। प्यार होने न होने के तरीकों पर अजब-गजब लिख रहे हैं। प्यार को धर्म और अध्यात्म की पवित्र राहों से निकाल कर मैं उसे फ्रायडिन गलियारे में ले चलता हूं। जहां महर्षि मार्क्स की मूर्ति के नीचे इसके डायरेक्ट एक्शन तरीकों की चर्चा की जा सके।
पिछले पोस्ट में मैंने प्रेम जताने के डायरेक्ट ऐक्शन तरीके की चर्चा की  थी। डायरेक्ट का तो मतलब ही होता है, सीधे। मतलब सीधी कार्रवाई। इसमें आपको अपनी प्रेमिका की मचान पर लटके शिकारी की तरह प्रतीक्षा नहीं करनी होती। सीधे प्रेमिका के पास जाइएसारा प्रेम एक ही दफा पकड़ कर जबरिया प्रकट कर दीजिए। हमारे हिंदुस्तान में यह  बहुत प्रचलित है।


नेतापुत्रों और सत्ता के दलालों को अगर लड़की  पसंद आ जाएऔर वह आगोश में आने को सहज ही राज़ी न होतो यह तरीका बेहद मुफीद लगता है। अब हमारे-आपके लिए दिक़्कत ये है कि इसमें थाने के जूते और हवालात की लात का भय होता है। लड़की के निकट बंधुजन आपको दचक कर कूट भी सकते हैं। तो इस उपाय में थोड़ा एहतियात बरतने की ज़रूरत है।

वैसे हम भी मानते हैं कि समाज में प्रेम तब तक पनप नहीं सकता जब तक प्रेम की  अभिव्यक्ति के सबसे डायरेक्ट एक्शन पर से रोक नहीं हटती। वरना संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क्या मायने है भला।

इसके साथ ही कई अन्य तरीके हैंवीपीपी से अभिमंत्रित अंगूठी मंगाने का जिसमें दावा  किया जाता है कि सात समंदर पार बैठी प्रेमिका भी आपकी गोद में पके गूलर की  तरह गिर जाएगी। या फिर वशीकरण मंत्र का जिसमें एक खास जड़ी को घिसकर तिलक लगाने से सुंदर से सुंदर लड़की भी आपके वश में आ जाएगी। 

खत लिखने का तरीका भी ज़्यादा पॉपुलर है। खतों को अधिकतर लोग पेन से लिखते हैं। कुछ लोग इसे लहू से लिखते हैं। कुछ उत्तर-आधुनिक प्रेमी तो मुर्गे आदि के खून का इस्तेमाल करते हैं। कुछ सिर्फ जताने के लिए लाल स्याही से लिखते हैं और साथ में ताकीद भी करते हैं- लिखता हूं अपने खून से स्याही न समझना। प्रेमियों को कम मत समझिए। 

अगर आपने प्रेम पत्र दिया और उसमें दो-चार कविता या शायरी डाल दीतो समझो  धूल में पड़ी सड़ रही सरकारी फाइल पर अपने रिश्वत का पेपरवेट डाल दिया है।  कविता भी कैसी जिसे तू ये तो मैं वो  की तर्ज पर लिखा जाता है। इन कविताओं  में प्रेमी अमूमन माटी का गुड्डा और पेड़ के नीचे रहने वाला मजनू  होता है और माशूक सोने की गुड़िया वगैरह। 

तो खत का ज़्यादा मजमून  जानने की बजाय दो-चार पन्नो का रसधारयुक्त पत्र लिख डालिएमुंह पर रोतडू  भूमिका चिपकाइए, दो हफ्ते तक शेव मत कीजिए..आप पक्के प्रेमी दिखेंगे। होना न होना आपके ऊपर है, हम दिखने की सलाह दे सकते हैं। चेहरे अपनी क्षमता के मुताबिक देवदासत्व ओढ़कर ही आप सच्चे प्रेमी हो सकते हैं। हालांकि नए जमाने की लड़कियों को डोले-शोले पसंद आते हैं। और हां, साथ में कैमरे वाला मोबाइल फोन ज़रूर धारण करें। वक्त-बेवक्त काम आएगा। आपका पर्स भी भारी-भरकम होना चाहिए..महर्षि मार्क्स ने तो बहुत पहले उचार दिया था,  प्रेम रूपांतरित आर्थिक संबंध हैं। तो अगर आप प्रेम करना चाहते हैं, तो बीपीएल न रहे। एपीएल हो जाएं। गरीबी रेखा वालों के लिए तमाम सरकारी योजनाएं हैं, और उनमें से कोई भी प्रेम के लिए समर्पित नही है।

एक बात और जो याद आ रही  है वह ये कि महर्षि मार्क्स पेट की बात करते थे..बाबा फ्रायड उससे थोड़ा नीचे उतरे। प्रेम के शाश्वत परिणाम की बात करते रहे फ्रायड चचा। निदा फाजली ने भी एक नज़्म लिखी है-

सरकारी मकानों की तरह,
हर लड़की का भी
होता है एक नंबर,
कोई भी दरवाजा खटखटाओ
रास्ता सीधे बेडरूम पर खत्म होता है।।

सावधान। ये मेरी नही...निदा साब की पंक्तियां है। सोच समझ कर अमल में लाएं। ये वैधानिक चेतावनी है। तो बात घूम कर वही पहुंची, जहां से शुरू हुई थी। प्रेम के मार्ग में शरीर उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना सनातम धर्म में सगुण उपासना। और इस उपासना में शिलाजीत वगैरह की महती भूमिका है। 

वैसे अगर आप दिल्ली से हावड़ा की ओर जाएं या मुंबई की ओर, पटरी के दोनों ओर दीवारों पर मोटे-मोटे हरफो में हकीमों-वैद्यों के इश्तहार यही ताकीद करते नजर आते हैं कि हमारे देश के आधे से ज्यादा मर्द या तो शीघ्रपतन के शिकार हैं, या फिर उनका अंग टेढा है। या तो उनका बचपन कुसंगतियों में गुजरा है, या फिर उनके सीमेन में शुक्राणु निल है। अब अपने देश की 1 अरब 21 करोड़ की आबादी क्या हमने नेट से डाउनलोड की है?

तो प्रेम में शरीर की भूमिका बहुत खास बल्कि पर्याप्त या यूं कहें कि पर्याप्त से भी ज्यादा है। मैं उस शरीर की बात कर रहा हूं, जो हिंदी का है। और जिसके साथ उर्दू वाला शरीर हुआ जाता है।

कुछ ऐसे विज्ञापन मिलते रेल पटरियों के किनारे 
इस कतोपकथन का तात्पर्य यह है कि सिर्फ पार्क में बैठकर बोगनवेलिया के पत्तो पर उसका नाम लिखते हुए आप कामयाब प्रेमी कत्तई नही बन सकते...अलगनी पर टंगे हुए कप़ड़े देखकर संतोष करने वाले भी देखते रह जाते हैं..तो आपको कई किस्म के जुगाड़ करने होंगे।


जुगाड़ के बाद अगर प्रेम चल निकले तो शर्त यह भी है कि सुमिरनी फेरने की तरह ही आपको रोजाना 108 बार देवी के महात्म्य का स्रोत पाठ करना होगा। कर पाए तो आप पर मेहरबानी वरना आप बनेंगे फिल्म तेरी मेहरबानियां  के केंद्रीय...चरित्र। जय हो!


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Sunday, January 2, 2011

प्यार के नाम पर पहरेदारी!

धीरज वशिष्ठ
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र, योग इंस्ट्रक्टर और स्वतंत्र पत्रकार हैं)
क्या आपको किसी से प्यार हुआ है ?  आप किसी के प्यार में कभी गिरफ्तार हुए हैं ?  कुछ ऐसे ही मिलते-जुलते दो-चार सवाल हैं जिससे हम सभी की मुठभेड़ होती है। हर कहीं प्यार के अंकुर पनपते, उसकी कलियां खिलती तो कहीं प्यार के फूल की खुशबू बिखरती नज़र आती है। खासतौर पर मेट्रो कल्चर में ऐसा शायद ही कोई लड़का-लड़की मिले जो कभी प्यार की बगिया में ना मिलें हों। लैला-मजनू और हीर-रांझा आज होते तो प्यार के इन गुलदस्तों को देखकर बाग-बाग हो जाते। हां..वो इस प्यार की गहराई में जाने की कोशिश करते तो उन्हें गुलदस्ते के नकली फूलों से दो-चार होना पड़ता।


ढाई अक्षर-प्रेम के इस नाम पर आज सबकुछ हो रहा है, सिर्फ प्यार नहीं। कई लोग मुझसे इत्तफाक ना रखें, लेकिन फ़ैसले लेने में जल्दबाज़ी भी क्या.. थोड़ा देखें तो सही कि प्यार की गली में क्या-क्या गुल खिलते हैं। मेरे देखे प्यार की शुरुआत फिजिकल एटरेक्शन से होती है और पहरेदारी पर जाकर अटक जाती है। शारीरिक आकर्षण नेचुरल है, इसको लेकर कोई एतराज़ नहीं। परेशानी दरअसल प्यार के नाम पर पहरेदारी को लेकर है।


एक सज्जन की बात यहां शेयर करना चाहूंगा। साहब काफी आशिक मिजाज़ हैं। चाहे ऑफिस में हो या घर की बालकनी में नज़रें तो हमेशा रूप-यौवना को ही तलाशती रहती हैं। थोड़ा से मौका मिल जाए तो लड़की के सामने इस तरह से लार-टपकाते नज़र आएंगे कि बेचारे कुत्तों को भी शर्म आ जाए। साहब की एक खूबसूरत बीवी भी हैं। जनाब का खूब ख़्याल रखती हैं। बावजूद पति-पत्नी के बीच महाभारत अक्सर छिड़ी रहती है। दरअसल, साहब को अपनी बीवी का किसी ग़ैर से बात करना सख्त नापसंद है। पड़ोस के वर्मा जी से बीवी ने मीठी ज़ुबान में थोड़ा हाल-चाल क्या पूछ लिया, घर में हायतौबा मच जाती है, महाभारत शुरू हो जाती    है। उस दिन बीवी का फोन थोड़ा बिजी मिला तो अगले कॉल में सवालों की झड़ी लग गई.. किससे बात हो रही थीइतनी देर तक बातचीत करने की क्या ज़रुरत थी ? ... वगैरह....वगैरह।


एक-दूसरे को ठीक से समझते ही नहीं प्रेमी-जोड़े 
क्या आप इसे मियां-बीवी के बीच प्यार कहेंगे। दरअसल प्यार के नाम पर ये पहरेदारी है। प्यार के नाम पे ये मल्कियत जताने की कोशिश है। हम किसी से प्यार करते हैं तो उसे अपनी संपत्ति समझने लगते हैं। इस मल्कियत की वजह से व्यक्तिगत आज़ादी का दम घुट जाता है। एक प्रेमी जोड़े को मैं जानता हूं जिनके बीच अच्छी बनती है, लेकिन लड़की की जैसे ही अपने एक क्लासमेट से ज़्यादा बातचीत शुरू हुई कि प्रेमी का सारा प्यार काफ़ूर हो गया। साफ चेतावनी दे दी गई कि चुन लो.. प्यार चाहिए या दोस्त ? अब उन्हें कौन समझाए कि दोस्ती की बुनियाद भी प्यार ही है। ऐसे कई जोड़े हैं जो बजायफ्ता अपनी गर्लफ्रैंड के मेल का पासवर्ड रखते हैं, मेल चेक करते हैं, फोन मैसेज से लेकर कॉल डिटेल तक को खंगाला जाता है। अब इसे आप क्या कहेंगे प्यार या पहरा ?


बेजुबान भी करते एक-दूसरे पर भरोसा 
एक प्रेमिका ने अपनी प्रेमी से पूछा कि क्या तुम शादी के बाद भी मुझे इतना ही प्यार करते रहोगे ? प्रेमी ने कहा, बिल्कुल अगर तुम्हारे पति को कोई एतराज़ न हो ! आज का प्यार कमोबेश ऐसा ही रह गया है। कहीं प्यार के नाम पर मल्कियत, तो कहीं प्यार के नाम पर पहरेदारी, तो कहीं प्यार के नाम पर टाइम पास। आज चारों तरफ प्यार करते हुए लोग आपको मिल जाएंगे, लेकिन प्यार कहीं अंधेरी कोठी में आठ-आठ आंसू रो रहा है।



प्यार की बगिया में ज़रूरी है भरोसे का फूल खिलना। प्रेमी जोड़ा करीब रहते हुए एक-दूसरी की आज़ादी और भावनाओं का ख़्याल रखे। प्यार के नाम पर हमें पहरेदारी बंद करनी होगी। खासतौर पर पुरुष मानसिकता को बदलने की ज़रूरत है, जहां लड़की की अपनी ख़ुद की कोई मर्ज़ी नहीं, ख़ुद की कोई दुनिया नहीं, आज़ादी नहीं। हर चीज़ पर उसका प्यार ही पहरा बना बैठा है। इस पहरेदारी के बीच प्यार कहीं कराह रहा है, तड़प रहा है, आख़िरी सांसें ले रहा है।

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