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Tuesday, December 21, 2010

आतंकवाद की नई 'कांग्रेसी परिभाषा'

मनोज मुकुल 
(लेखक आईआईएमसी] नई दिल्ली के पूर्व छात्र और स्टार न्यूज़ में एसोसिएट सीनियर प्रोडयूसर हैं)
आतंकवाद को लेकर देश में इस वक्त बहस छिड़ी हुई है। अब तक आतंकवाद को जाति, धर्म, संप्रदाय वगैरह-वगैरह के चश्मे से देखने से देश का प्रबुद्ध समाज बचता रहा था। जानते सब थे लेकिन खुली जुबान से बोलने और लिखने से परहेज करते थे।  आतंक का कोई धर्म नहीं होता  इस जुमले में अब से पहले शायद राजनीति करने वाले हर दल के लोग यकीन करते थे। लेकिन अमेरिका की नाक में दम करने वाली वेबसाइट विकीलीक्स ने बीती 17 दिसंबर को जो खुलासे किए, उसने देश में आतंकवाद के लिए नए शब्द की रचना कर दी । भगवा आतंकवाद, हिंदू आतंकवाद,  मुस्लिम आतंकवाद,  सिख आतंकवाद और जितने भी नाम हो सकते हैं, उन सब नामों को लेकर जो बातें दबी जुबान में ऑफ द रिकॉर्ड होती थीं वो बातें विकीलीक्स के खुलासे के बाद ‘ऑन द रिकॉर्ड’ होने लगीं। न्यूज चैनलों और अखबारों में आतंकवाद को आतंकवाद के नाम से ही लिखा या बोला जाता था लेकिन 17 दिसंबर को देश के सभी न्यूज चैनल से लेकर अगले दिन अखबारों ने मर्यादा को लांघते हुए आतंकवाद शब्द को हिन्दुस्तान के पारंपरिक परिदृश्य से हटाकर दो धड़ों में बांट दिया। साफ-साफ लिखा गया इस्लामिक आतंकवाद

(आपको अगर याद हो तो याद कीजिए मुंबई पर हमले के वक्त किसी ने नहीं कहा कि ये इस्लामिक आतंकवाद है, दिल्ली ब्लास्ट के वक्त किसी ने नहीं कहा कि हमला मुसलमानों ने किया है, क्योंकि तब आतंक को धर्म के चश्मे से देखने की परंपरा शुरू नहीं हुई थी, मीडिया ने शुरूआत भी की और कांग्रेस को और आगे बढ़कर कहने का मंच भी दिया।)

एक सुर में बोल रहे मनमोहन-राहुल-सोनिया 
आगे बढ़िए, बात यहीं तक होती तो काम चल जाता लेकिन मामला देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने से जुड़ा था, लिहाजा इस पर पानी डालने के बजाए कांग्रेस के लोगों ने आक्रमक होने की रणनीति पर अमल करना बेहतर समझा। 19 दिसंबर को कांग्रेस महाधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आतंकवाद को जिन दो शब्दों में बांट कर रखा उसे देश ने इससे पहले न तो सुना था और ना ही किसी किताब में पढ़ा था। सोनिया के मुंह से निकले थे दो शब्द  अल्पसंख्यक आतंकवाद और बहुसंख्यक आतंकवाद। मतलब दूध की तरफ साफ है। अल्पसंख्यक आतंकवाद की जगह वो इस्लामिक आतंकवाद, मुस्लिम आतंकवाद और बहुसंख्यक आतंकवाद की जगह हिंदू आतंकवाद जैसे शब्द भी बोल सकती थीं। लेकिन सियासत में डर हर किसी को लगता है। लिहाजा अपने पूरे भाषण के दौरान सोनिया ने इन दोनों शब्दों का दोबारा इस्तेमाल तो नहीं ही किया ना ही इसका वर्णन करना उचित समझा। इन दो शब्दों ने कांग्रेस की सियासी आक्रमकता के मतलब तो बताये ही ये भी साफ करने की कोशिश की गई कि राहुल गांधी ने पिछले साल अमेरिकी राजदूत से जो कुछ कहा, उसके लिए सफाई की जगह देश को तेवर दिखाने की ज़रूरत है। सोनिया के बयान को समझने के लिए राहुल के उस बयान को जानना जरूरी है जो उन्होंने अमेरिकी राजदूत को कहा था। पिछले साल यानी 2009 के जुलाई महीने में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन भारत दौरे पर थीं, और पीएम के घर भोज के दौरान अमेरिका के राजदूत टिमोथी रोएमर ने राहुल से सवाल किया कि देश को लश्कर से कितना बड़ा खतरा है। जवाब में राहुल ने कहा कि देश को इस्लामिक आतंकवाद से ज्यादा हिंदू कट्टरपंथियों से खतरा है।"

विकिलीक्स : कई सरकारों की बोलती बंद 
संघ और उससे जुड़े संगठनों के खिलाफ राहुल बोलते रहे हैं, ये उनका अधिकार भी है और विचारधारा के स्तर पर इनके खिलाफ बोलना कर्तव्य भी। लेकिन जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल उन्होंने रोएमर के सामने किया वाकई में देश को इसकी उम्मीद नहीं हो सकती थी। और शायद देश में कभी भी किसी जगह जाकर खुद इस तरह के शब्दों को बोलने की हिम्मत वो नहीं जुटा सकते थे। लेकिन पर्दे के पीछे हुई बातचीत विकीलीक्स के विस्फोट के बाद दुनिया के सामने हैं। डैमेज कंट्रोल के लिए रुख को और ज्यादा आक्रमक बनाया जा रहा है। 19 दिसंबर को दिल्ली के अधिवेशन में सोनिया के साथ ही संघ और उससे जुड़े संगठनों के खिलाफ आक्रामक अंदाज़ में बोलने वाले कोई और था तो वो थे दिग्विजय सिंह। दिग्विजय सिंह ने तो न जाने क्या क्या कहा...लेकिन बारी जब राहुल गांधी की आई तो देश उनके मुंह से विकीलीक्स के दावे की सच्चाई जानना चाहता था पर राहुल विकास, संगठन और भ्रष्टाचार पर बोलकर चलते बने। जिस बहस की शुरुआत उन्होंने की उसको छूने तक की जरूरत या यूं कहिए हिम्मत नहीं जुटा पाए।
क्या नेता बताएँगे आतंकवाद का धर्म 

एक बात जो समझ से परे नहीं है वो ये कि अगर विकीलीक्स का खुलासा नहीं होता तो शायद इस वक्त कमजोर हो चुके विपक्ष पर एक साथ कांग्रेस का पूरा कुनबा वार नहीं करता और देश में आतंकवाद की परिभाषा को लेकर बहस नहीं शुरू हुई होती। बहस की शुरुआत इसलिए ही हुई कि कांग्रेस के युवराज ने दुनिया के मंच पर देश के बहुसंख्यक समुदाय की छवि को आतंक से सीधे सीधे जोड़ दिया। संघ का आतंक से रिश्ता है या नहीं, ये मामला सियासत के लिए सही हो सकता है। लेकिन हिन्दुस्तान को लश्कर, जैश, हूजी, आईएम की जगह हिंदू कट्टरपंथ से ज्यादा खतरा है ये कहना आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को दुनिया के मंच पर कमजोर करने की दिशा में दिया गया बयान ही माना जाएगा। क्योंकि देश क्योंकि देश 26/11 के कसाब से लेकर मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट, दिल्ली सीरियल ब्लास्ट, जयपुर ब्लास्ट, अहमदाबाद ब्लास्ट, संसद हमला, लाल किला हमला और न जाने कितने हमलों की तारीख भले ही भूल गया है लेकिन दर्द को नहीं भूला पाया है। और विकीलीक्स का दावा इसी दर्द पर मरहम नहीं नमक के समान है।


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