Saturday, December 4, 2010

खुद के साथ जी ले ज़रा

धीरज वशिष्ठ
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र, योग इंस्ट्रक्टर और स्वतंत्र पत्रकार हैं)
फेसबुक पर मेरे एक अज़ीज़ दोस्त ने लिखा है ‘’ जीवन में स्वयं को समय देना बहुत महत्वपूर्ण है...’’ । वे आगे सवाल करते हैं कि आप खुद के साथ कितना वक्त बिताते हैं ? ये वो सवाल है जो हमें सोचने के लिए मजबूर करता है। सही मायने में हम इस सवाल के जवाब को तलाशने के लिए बैठें तो हमें निराशा हाथ लगेगी। ऊपरी तौर से हमें लगेगा कि हम तो 24 घंटे अपने साथ ही होते है, खुद को हम सबसे ज्यादा वक्त देते हैं, लेकिन क्या ये जवाब सही है? नहीं, जवाब है- हम खुद को वक्त नहीं दे पा रहें हैं। इस तेज रफ्तार दुनिया में, सबकुछ पाने की हमारी छटपटाहट ने हमें खुद से बहुत दूर कर दिया है। आंखें हमेशा दूसरों को देखती है, कान दूसरों की सुनते हैं और हम खुद से वंचित रह जाते हैं। इस भीड़ में हमने खुद को अकेला कर रखा है।

सवाल है कि खुद को वक्त देना का मतलब क्या है ?  क्या खुद को वक्त देने का मतलब इतने भर से है कि हम कितने देर परिवार के साथ होते हैंकितना वक्त अपनी सेहत और व्यक्तित्व को निखारने के लिए निकाल पाते हैं ?  कितना वक्त हम खुद के मनोरंजन में दे पातें हैं..वगैरह..वगैरह।

नहीं.. खुद को वक्त देने का मतलब कहीं गहरा है। बुद्ध से जब यही सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा कि ‘’होश के साथ जीना ही जिंदगी है और बेहोशी मौत है’’। हम अपने साथ होते है, लेकिन शारीरिक तौर से सिर्फ, मानसिक तौर पर हम कहीं और होते हैं। खुद को वक्त देने का मतलब सिर्फ इतने भर से है कि आप जो भी करें होशपूर्वक करें। क्या कर रहें हैं, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। आप का काम घास काटने का है या न्यूज़ परोसने का या कुछ और, आप जो भी करें होश के साथ करें।

जीने की राह दिखता आध्यात्म 
आपने कभी गौर किया है जब आप ऑफिस में होते हैं तो आप ऑफिस में नहीं बल्कि घर पर होते है, और जब घर में होते हैं तो ऑफिस में क्या करना है, इसका ख्याल दिमाग में चल रहा होता है। हम ऑफिस में होते हैं तो घर की सोचते हैं.. बीवी क्या कर रही होगी.. बच्चे स्कूल से आएं या नहीं..? घर में होते हैं तो सोचते है कि आज ऑफिस में कौन सा काम निपटाना है। हम बंटे हुए हैं.. और हमारा ये खंडित व्यक्तित्व हमें अपने साथ नहीं होने देता।

सवाल फिर वही उठता है कि जिंदगी में हम खुद को कैसे वक्त दें ? अपने साथ होने की कला को हम कैसे विकसित करें ? तंत्र और योग ने इसको लेकर कई अहम प्रयोग किएं हैं। तंत्र की पूरी तकनीक इसी पर फोकस करती है कि हम कैसे अपने साथ हो सकें।

होशपूर्वक जीने की इस कला को आप छोटे-छोटे लेकिन काफी असरदार प्रयोगों से सीख सकते हैं। हम खाने के वक्त अक्सर या तो टीवी ऑन कर देते हैं या गप्पे मारते रहते हैं। तंत्र कहता है कि जब भोजन करें तो आप स्वाद बन जाएं, यानी भोजन से जो स्वाद मिल रहा है पूरी तरह से मन को उसमे लगा लें। भोजन के स्वाद के साथ ऐसा एकाकार हो जाएं कि पता ही नहीं चलें कि स्वाद और आप अलग-अलग हैं। बहुत साल बाद दोस्त या रिश्तेदारों के साथ मिलने के वक्त आपको जो खुशी होती है, उसके साथ मन को जोड़ने की कोशिश करें। खुशी के इस अहसास को ज्यादा देर तक अपने साथ आत्मसात होने दें..इसे जल्दी काफूर नहीं होने दें। जब कभी सिर या बदन में दर्द महसूस हो तो चिल्लाएं या रोएं नहीं, शांत होने की कोशिश करें और मन को दर्द के साथ जोड़ लें। दर्द के साथ मन को जोड़ना आसान है। आप पाएंगे जैसे ही दर्द के साथ आपका मन एक होता जाएगा, दर्द की अनुभूति कम होती जाएगी। किताब पढ़ रहें हो तो आप किताब हो जाएं, एक-एक शब्दों में ऐसे खो जाएं कि जैसे हर एक लाइन आप की कहानी कह रहा हो।


ये छोटे-छोटे ऐसे प्रयोग हैं जो हमें होश से भर देंगे। हमें अपने साथ होने की कला सिखा देंगे। मतलब साफ है जो भी करें पूरी तत्परता के साथ करें.. खाने के वक्त खाना, काम के वक्त काम.. ये वो सूत्र है जो आप के अंदर एक नए शख्स को जन्म देंगे।

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4 comments:

  1. you have stated a very true fact of life. i think i'll learn from this and try to apply it in my life.. good work

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  2. khud ke saath vakta bitana sayad dunia ki sabse badi tapsya hai. yah bahut aasan aur utana hi muskil bhi hai. isliye shayad log khud se bhagte rahte hai.Rajesh Mishra

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  3. very nice, kary ki kushalta hi yog he,gyan ,karma aur bhakti ka ho agar sanyog to har pal ban jata he yog.

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  4. "हम बंटे हुए हैं.. और हमारा ये खंडित व्यक्तित्व हमें अपने साथ नहीं होने देता"" जब कभी सिर या बदन में दर्द महसूस हो तो चिल्लाएं या रोएं नहीं, शांत होने की कोशिश करें और मन को दर्द के साथ जोड़ लें। दर्द के साथ मन को जोड़ना आसान है। आप पाएंगे जैसे ही दर्द के साथ आपका मन एक होता जाएगा, दर्द की अनुभूति कम होती जाएगी। किताब पढ़ रहें हो तो आप किताब हो जाएं, एक-एक शब्दों में ऐसे खो जाएं कि जैसे हर एक लाइन आप की कहानी कह रहा हो।"
    wow........such a inspiring words Dhreej. Nice articles


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