Tuesday, September 28, 2010

बिलकुल खामोश है फुर्सतगंज की खुशी...!

काल्पनिक फोटो. साभार google
फिल्म बंटी और बबली तो याद होगी आपको. एक नाम भी ज़हन में होगा. फुर्सतगंज.  पहले यूपी के रायबरेली में था ये इलाका. बीते दिनों मायावती सरकार ने अमेठी और रायबरेली के कुछ हिस्सों को तोड़कर नया जिला बनाया. नाम छत्रपति शाहूजी महाराज नगर. अब फुर्सतगंज नए जिले का हिस्सा है.
     
रविवार सुबह 8 बजे फुर्सतगंज के सरवन गाँव में संतोष अपने घर में बैठा था. साथ थी बीवी और 7 साल की बेटी खुशी. अचानक गाँव का सरपंच अपने साथियों के साथ आया. पहले उसकी बीवी को पीटने लगा. बेटी को भी मारा. संतोष कमरे में अपनी बहन को फोन पर कह रहा था, जान बचा लो मेरी. दबंगों को  भनक लगी कि संतोष कमरे के अंदर है तो दरवाज़ा तोड़कर उसे बाहर ले आये. उसके सामने ही खुशी को मारने लगे. संतोष बोला, बेटी को मत मारो, चाहो तो मेरी जान ले लो. फिर शुरू हुआ दरिंदगी का खेल. जमकर पीटने के बाद दबंगों ने संतोष का एक हाथ और एक पैर काट दिए. खुशी चारपाई के नीचे से अपने पापा को मरता देख रही थी. संतोष की बीवी गाँव के हर दरवाज़े पर गयी लेकिन वहाँ कोई 'मर्द' नहीं था जो दबंग सरपंच के खिलाफ बोलता.

एक घंटे तक ये सब हुआ लेकिन पुलिस नहीं पहुंची. इसके बाद नए जिले की पुलिस एक तरफ से आ रही थी तो कातिल दूसरी तरफ से जा रहे थे. लोग कहते हैं कि कातिलों का एक गुट पुलिस थाने में बैठा था. पुलिस को सब पता था. जब पुलिस की जीप आई तो तडपता संतोष दर्द से उछल रहा था ज़मीन पर. मरा नहीं था लेकिन. पुलिस ने संतोष की बीवी से कहा, इसे उठा कर जीप में रखो. समस्या ये थी की पहले जीप में क्या रखे? कटा हाथ, पैर या बाकी शरीर. किसी तरह सब कुछ जीप में रखा. कुछ दूर जाकर संतोष मर गया.

असली कहानी के बारे में ये बता दें कि संतोष गुवाहाटी में नौकरी करता था. उसका एक भाई सरपंच की लड़की को भगा ले गया था. जवाब में सरपंच ने संतोष के छोटे भाई अखिलेश को किडनैप कर लिया. पुलिस को ये भी पता था. फोन पर अखिलेश ने संतोष से कहा था, मेरी जान बचा लो भैया. संतोष भाई के लिए गुवाहाटी से आया था. वो अनजान था कि फुर्सतगंज अब दूसरे जिले में है. वो सीधा गया रायबरेली के एसपी के पास. बोला, जान बचा लीजिए हमारी. एसपी बोले,  हमारा जिला नहीं है पर वहाँ इत्तिला कर देते हैं. जब दबंग संतोष को मार रहे थे तो उसकी बहन ने 6 बार रायबरेली में 100 नंबर पर फोन किया और बताया कि भाई को बचाओ. पुलिस बोली, दूसरे जिले का मामला है. बोल देते हैं. दोनों जिलों की पुलिस सोच रही थी, पहले कौन जाएगा? मौका-ए-वारदात से पुलिस थाना सिर्फ 4 किलोमीटर दूर था. नए जिले के पुलिस वाले आये एक घंटे बाद. जब संतोष अलग और उसके हाथ-पैर अलग हो चुके थे. सोमवार को लोगों ने नाराज़ होकर सड़क जाम की तो फिर लाठी चली. नेता संतोष के घर आने लगे हैं. कहते हैं कड़ी सजा मिलेगी कातिलों को. पापा के क़त्ल के बाद खुशी एकदम खामोश है. एकबार रोई भी नहीं. पता नहीं क्या हो गया ?

कुछ दिन पहले राहुल गाँधी भी थ्रीजी मोबाइल सर्विस शुरू करने इसी गाँव गए थे. लोगों को पता ही नहीं है कि अब वो दूसरे जिले का हिस्सा हैं. नेताओं ने कुछ बताया ही नहीं. सरकारी कारिंदे कुछ सुनते नहीं है. रायबरेली वाले अफसर भगा देते हैं. यूपी के हर शहर हर गाँव में सूबे की सरकार ने होर्डिंग लगा रखी है. मोटे-मोटे शब्दों में लिखा है.... सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय. 

( लेखक प्रवीन मोहता भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व छात्र हैं.)

2 comments:

  1. बहुत दुखद है। ये सिर्फ यूपी की ही हालत नहीं, पूरे देश की हालत है। दबंग लोग गरीबों को कैसे सताते हैं लगता है कि मिथुन चक्रवर्ती के फिल्मों की प्रसांगिकता अभी भी जिंदा है। ये भी एक वजह है कि छोटे-2 कस्बों में अभी भी मिथुन हीरो हैं, क्योंकि हालात वैसे ही हैं। हम बेबस से लगते हैं कि कुछ कर नहीं पाते।

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  2. सुशांत भाई कर सकते है....हम जानते है की अकेला सख्स उजाला नहीं कर सकता...लेकिन हम अपने हिस्से की दीया तो जला ही सकते है....प्रवीन दुखद घटना को खुबसूरत ढंग से लिखा.

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