Monday, September 20, 2010

बिहार के बाहुबलियों को जानिए...

मनोज मुकुल 
 अब कहने को तो बिहार में ज्यादातर नेता अपने अपने इलाके में बाहुबली ही कहे जाते हैं। लेकिन उन बाहुबलियों के बारे में चर्चा करना ज्यादा जरूरी है जिनका प्रभाव अपने इलाके से बाहर भी है। ज्यादा दिन पहले नहीं पंद्रह साल पहले चलते हैं।
बिहार में उस वक्त गिने चुने बाहुबली हुआ करते थे। ये वो दौर था जब बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का प्रभाव ज्यादा बढ़ा। और उनकी महत्वकांक्षाएं राजनेताओं की सियासत को हिलाने लगी थी। उस वक्त आनंद मोहन विधायक हुआ करते थे। पप्पू यादव भी विधायक थे। दोनों का खास इलाके, खास जाति पर अपना प्रभाव था। हालांकि 1995 से पहले ही आनंद मोहन
ने जनता दल का साथ छोड़ बिहार पीपुल्स पार्टी नाम का दल बनाया था। इस समय आनंद मोहन की पत्नी लवली वैशाली से उपचुनाव जीतकर सांसद बनी थीं। ये वो दौर था जब अशोक सम्राट, रामा सिंह, छोटन शुक्ला, देवेंद्र दुबे, सुनील पांडे, सतीश पांडे, अखिलेश सिंह, अवधेश मंडल, अशोक महतो, बृजबिहारी, शहाबुद्दीन अपराध के रास्ते सियासत में घुसने का रास्ता तलाश रहे थे। आनंद मोहन की पार्टी ने इनमें से कई लोगों को अपनी पार्टी के जरिये प्लेटफॉर्म भी मुहैय्या कराने का काम किया। हालांकि चुनाव से पहले छोटन शुक्ला की हत्या हो गई। अशोक सम्राट भी मारे गए। और भी कुछ नाम थे जो अभी याद नहीं आ रहा। लेकिन जो बचे उन्होंने वर्तमान हालात को देखते हुए सियासत में सीधे घुसना ही बेहतर समझा। देवेंद्र दुबे और सुनील पांडे ने नीतीश का साथ दिया..तो शुक्ला परिवार उस समय आनंद मोहन के करीब चला गया। ब़ृजबिहारी लालू के साथ थे। बाद में मंत्री रहते हुए हत्या हो गई। कुछ लोग निर्दलीय किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरे। शहाबुद्दीन इसी दौर की उपज है। 95 में शहाबुद्दीन जीरादेई से पहली बार निर्दलीय जीतकर आए थे। बाद में उन्होंने लालू का साथ दिया और फिर कहां तक गए देश देख चुका है। ये हम उस दौर की चर्चा कर रहे हैं जब बिहार की सियासत में अपराधिकरण की शुरुआत हुई थी। 1995 से लेकर साल 2000 तक बिहार की सियासत में कई उलटफेर हुए। कई बाहुबली 'शहीद' हो गए तो कई लोगों ने सत्ता के साथ अपनी सियासी जमीन मजबूत बना ली। इस दौर में प्रभुनाथ सिंह, साधु यादव, तस्लीमुद्दीन, बूटन सिंह, प्रदीप महतो जैसे लोग भी परिस्थितियों के साथ ज्यादा मजबूत होते चले गए। जहां तक जनमत का मामला था तो इन बाहुबलिय़ों में ज्यादातर का अपने इलाके से बाहर प्रभाव उतना ज्यादा नहीं था। आनंद मोहन जरूर उस दौर में राजपूतों के सबसे बड़े नेता बनकर बिहार में उभर चुके थे। चूंकी लालू खुद यादवों का नेतृत्व कर रहे थे लिहाजा पप्पू यादव को वो कुर्सी नहीं मिली, लेकिन कोसी के इलाके में पप्पू यादव ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली। शुक्ला खानदान की सियासत को आगे बढ़ाने का काम किया मुन्ना शुक्ला ने। साल दो हजार आते आते बिहार की राजनीति में नेता कम बाहुबली ज्यादा थे जो सीधे सक्रिय हो गये। इस दौर में सूरजभान, अनंत सिंह, राजन तिवारी, सुनील पांडे, कौशल यादव, बबलू देव, धूमल सिंह, अखिलेश सिंह, दीलिप यादव सरीखे नेता सीधे सीधे खुद के लिए जनता से वोट मांगने जा पहुंचने वालों में शामिल हो गये। ज्यादातर लोग इनमें से जीतकर विधानसभा पहुंचे और बिहार विधानसभा की तस्वीर बदल दी थी। आपको अगर याद न हो तो बता दूं.. कि जब इनमें से ज्यादातर लोग निर्दलीय जीतकर आए तो सात दिन की सरकार में इन बाहुबलियों ने नीतीश कुमार का साथ दिया था। बाद में कई लोग जहां तहां अपनी सेटिंग करने में कामयाब हो गए।

अब अगर वर्तमान सूरत में इन बाहुबलियों की जगह के बारे में बता दूं तो... खुद आनंद मोहन जेल में हैं, और उनकी पत्नी कांग्रेस में। आश्चर्य न हो अगर कुछ दिनों बाद आनंद मोहन पत्नी के साथ फिर से जेडीयू में लौट आएं।
पप्पू यादव तो चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन कागजी तौर पर पत्नी के साथ कांग्रेस में हैं। अभी कोई भी सांसद या विधायक नहीं हैं। सूरजभान लोजपा में हैं। लेकिन वो भी सांसद या विधायक नहीं हैं। राजन तिवारी भी हारे हुए हैं और जेल में हैं। प्रभुनाथ सिंह आरजेडी में गये हैं, हारे हुए हैं, न विधायक और ना ही सांसद हैं लेकिन सारण में अच्छा खासा प्रभाव है। तस्लीमुद्दीन अभी जेडीयू में हैं, हारे हुए हैं न सांसद हैं और ना ही विधायक कोसी (सीमांचल)के इलाके में अच्छा दबदबा है। साधु यादव कांग्रेस में हैं, हारे हुए हैं न सांसद हैं और ना विधायक, इनका कहां प्रभाव है नहीं मालूम। शहाबुद्दीन भी जेल में हैं। सजा पा चुके हैं लिहाजा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, पत्नी को जरूर विधानसभा लड़ा सकते हैं। वैसे लोकसभा लड़कर हार चुकी हैं। इनका सीवान में प्रभाव है।
मुन्ना शुक्ला विधायक हैं और जेडीयू में हैं मुजफ्फरपुर और वैशाली में इनका दबदबा है। अनंत सिंह, सुनील पांडे, धूमल सिंह भी जेडीयू में हैं और विधायक हैं। ये वो बाहुबली हैं जो अपने क्षेत्र के साथ ही आसपास के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं। वैसे और बाहुबलियों की बात करे तो बबलू देव अभी आरजेडी में हैं और विधायक हैं। अखिलेश सिंह, नवादा वाले अभी जेल में हैं शायद, पत्नी को चुनाव लड़वाया था एक बार विधायक भी बनीं थी लेकिन अभी कुछ नहीं हैं। कौशल यादव नवादा के गोविंदपुर से और उनकी पत्नी पूर्णिमा अभी नवादा से निर्दलीय विधायक हैं दोनों। और दिलीप यादव अभी आरजेडी से विधायक हैं। दिलीप यादव ने लेसी सिंह को हराया था, लेसी सिंह बूटन सिंह की पत्नी है। बूटन सिंह जो कि बाहुबली माने जाते थे उनकी 2000 के चुनाव से पहले हत्या हो गई थी। प्रदीप यादव की भी हत्या हो चुकी है, उनकी पत्नी अश्वमेघ देवी पहले विधायक बनीं अभी जेडीयू से सांसद हैं। जहानाबाद में जगदीश शर्मा बड़े नेता हैं और बाहुबली भी, कांग्रेसी थे पहले अभी जेडीयू के टिकट पर जीते थे लेकिम पार्टी से निलंबित हैं। पत्नी इनकी निर्दलीय विधायक हैं घोसी सीट से। जहानाबाद में अच्छा प्रभाव हैं। जहानाबाद में ही प्रभाव वाले नेता सुरेंद्र यादव भी हैं जो लोकसभा हार गये थे। लेकिन इलाके में प्रभाव है। इसके अलावा भी और कई नाम है। जैसा की शुरुआत में ही बताया हर इलाके में कोई न कोई लोकल बाहुबली है जो एक विधानसभा क्षेत्र की सियासत तो करता ही है। सीतामढ़ी में राजेश चौधरी, अनवारुल हक, श्रीनारायण सिंह का प्रभाव। मोतिहारी में बबलू देव, रमा देवी, सीताराम सिंह, राजन तिवारी, गप्पू राय, का प्रभाव तो बेतिया में सत्तन यादव, बीरबल यादव, पूर्णमासी राम का प्रभाव। पूर्णमासी राम अभी गोपालगंज से सांसद हैं, लेकिन बगहा में इनकी राजनीति अच्छी खासी पकड़ वाली है। जेडीयू से निलंबित चल रहे हैं। गोपालगंज में सतीश पांडे, साधु-सुभाष यादव का प्रभाव है। आरा, बक्सर में आइए तो यहां की राजनीति अलग तरीके से होती है। यहां लाल झंडे की सियासत भी है सो समीकरण समय के हिसाब से बनते बिगड़ते हैं। सुनील पांडे और भगवान सिंह सरीखे नेता अभी नीतीश की पार्टी से विधायक हैं। बेगूसराय में तो कई सूरमा है। बेगूसराय, नवादा और पटना के ग्रामीण इलाकों में तो बिहार के बाहुबलियों का हिसाब किताब चलता है। सूरजभान, अनंत सिंह, ललन सिंह(सूरजभान खेमा), नागा सिंह, नाटा सिंह का गिरोह(दोनों राजनीति में सीधे सक्रिय नहीं, शायद एक कोई अब नहीं है याद नहीं आ रहा)। नवादा के एक कोने में बाहुबली अखिलेश सिंह(वारसलीगंज),आदित्य सिंह, अशोक महतो, कौशल यादव जैसे लोग प्रभावी रूप से सक्रिय हैं। बिहारशरीफ में पप्पू खां। पूर्णिया और कोसी के इलाके में तो पप्पू यादव, तस्लीमु्ददीन, आनंद मोहन के अलावा अब शंकर सिंह, अवधेश मंडल, दिलीप यादव, किशोर कुमार मुन्ना भी प्रभावित करने वाले लोगों में शामिल हो गये हैं। ये रहा बिहार की सियासत के अपराधिकरण की कहानी का पूरा डाटा। वैसे अब भी कई दबंग टाइप के लोग हैं जिनका खास खास इलाके में खासा प्रभाव है। कुछ लोगों के नाम छूट गये होंगे, ऐसा मुझे पूरा भरोसा है। लेकिन मोटा मोटी डाटा जो है बिहार की सियासत का वो यही है। कुछ लोग जाति के नाम पर नेता बने हुए हैं तो कुछ लोगों की इलाके से बाहर सिर्फ बाहुबली नेता की पहचान है इसके अलग ढेला भर का कोई प्रभाव वो नहीं छोड़ सकते। रही बात किस पार्टी में कितने बाहुबली है वो अंदाज लग गया होगा। वैसे कुछ और बाहुबली हैं ,जो अपना जुगाड़ या अपनी पत्नी के लिए टिकट का जुगाड़ लगा रहे हैं पहली पसंद उनकी अभी जनता दल यूनाइटेड हैं, दूसरी कांग्रेस। ताजा खबर ये है कि कुछ लोग जो आरजेडी के टिकट पर जीतकर पिछली बार आए थे.. और उनका रिश्ता, रिश्तेदार किसी न किसी रूप में अपराध जगत से जुड़ा है वो लोग जेडीयू में जा रहे हैं। पक्की खबर है। वैसे एक बात बता देना जरूरी होगा कि नीतीश ने अपने राज में बाहुबलियों को फड़फड़ाने का मौका नहीं दिया। ज्यादातर बाहुबली नीतीश के राज में ही जेल गये। अब देखिये इस चुनाव में क्या होता है।

1 comment:

  1. जानकारी से परिपूर्ण लेख।

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