Wednesday, October 6, 2010

लिविंग ट्रस्ट यानि नो चिंता नो फ़िक्र

मुकेश झा 
(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व छात्र और 'प्रोपर्टी एक्सपर्ट' पत्रिका में सीनियर सब एडिटर हैं.)
लिविंग ट्रस्ट के तहत आप अपनी चल-अचल प्रॉपर्टी को अपने ईच्छा वारिस को क्रमानुसार हस्तांतरित करते हैं। इसके तहत व्यक्ति पारंपरिक वसीयत योजना को अपनाते हुए ही लिविंग ट्रस्ट की नई राह को अपनाते हैं। इसमें मृत्यु के काफी पहले ही वारिस अथवा पारिवारिक ट्रस्ट को संपत्तियों का हस्तांतरण कर दिया जाता है। इसमें एक ही परिवार को अथवा परिवार की उपशाखाओं को मिलाकर एक ट्रस्ट बनाकर प्रॉपर्टी का हस्तांतरण होता है। इसमें एक फायदा यह भी है कि एक से ज्यादा ट्रस्ट को भी संपत्तियों का हस्तांतरण किया जा सकता है।
 
लिविंग ट्रस्ट का सिद्धांत भले ही अपने देश में इतना प्रचलन में न हो लेकिन अमेरिका जैसे देशों में इसका खूब प्रचलन है। वर्तमान में भारतीय भी लिविंग ट्रस्ट के नए सिद्धांतों को तेजी से अपना रहे हैं। लिविंग ट्रस्ट के सहारे आप अपने वारिस को प्रॉपर्टी देने की योजना को सुखद और आसान बना सकते हैं।
यह एक प्रकार का लिविंग ट्रस्ट वंडरलैंड की वसीयत योजना को प्रक्रिया में लाने में अहम योगदान देता है। यह वसीयत योजना में एक टूल की तरह है। इस कॉन्सेप्ट को समझने के लिए आपको एक उदाहरण पर ध्यान देना होगा।
फोटो साभार google
पटना के कंकड़बाग कॉलोनी में एक बुजुर्ग राधेश्याम जी रहते हैं। उनकी पत्नी का देहांत 3 साल पूर्व हो चुका है। राधेश्याम जी की उम्र 80 साल है और सेहत भी खराब है। राधेश्याम जी के दो बेटे और दो बेटियां हैं लेकिन कोई भी उनकी देखभाल के लिए आगे नहीं आया। सभी अपनी घर-गृहस्थी बसा चुके हैं। राधेश्याम जी को इस उम्र में भी अपने फाइनेंशियल और व्यक्तिगत काम खुद करने होते हैं। इन चारों में सिर्फ एक बेटी कान्ति ही ऐसी है कि उनकी खराब सेहत को लेकर परेशान है और सेवा करती हैं। राधेश्याम जी की ईच्छा है कि वह अपनी पूरी प्रॉपर्टी और दिल्ली वाला मकान कान्ति को दें। वैसे तो यह आसान है कि एक वसीयत बनाएं और प्रॉपर्टी का अधिकांश हिस्सा अपनी बेटी कान्ति के नाम कर दें। लेकिन राधेश्याम जी को चिंता है कि उनके बाद उनकी वसीयत को चुनौती दी जाएगी और परिवार के सदस्य आपस में लड़ेंगे। इससे बचने के लिए जब उन्होंने एक्सपर्ट से सलाह ली तो उसने लिविंग ट्रस्ट का अमेरिकी सिद्धांत अपनाने की सलाह दी। उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया और वसीयत योजना से बेफिक्र हो गए। वास्तव में लिविंग ट्रस्ट एक मोडर्न कॉन्सेप्ट है, जो आपकी अपनी परिसंपत्तियों के बंटवारे का और इसे भविष्य में कोर्ट में चुनौती की भी चिंता से छुट्टी दिला सकता है। 
जानकारों का कहना है कि आने वाले वर्षों में वसीयत बनाने की प्रथा को ये पीछे छोड़ देगा। इसमें एक फायदा यह भी है कि एक से ज्यादा ट्रस्ट को भी संपत्तियों का हस्तांतरण किया जा सकता है। इसी तरह लिविंग ट्रस्ट विभिन्न उद्देश्यों के लिए बनाया जा सकता है, जो वसीयत लिखने वाले के दिमाग में हो। लिविंग ट्रस्ट सिद्धांत के तहत एक से ज्यादा ट्रस्टों को एक ही परिवार की तरह देखा जाता है। लिविंग ट्रस्ट के तहत वसीयत को चुनौती देने का सवाल ही नहीं उठता। इसकी प्रक्रिया भी आसान है। लिविंग ट्रस्ट का सिद्धांत अपनाते समय यह देखा जाता है कि वसीयतकर्ता ने अपनी पूरी जि़दगी में एक ट्रस्ट बनाया हो या फिलहाल एक या उससे अधिक ट्रस्ट हों जो लाभ पाने वालों के हित के लिए वर्तमान समय में भी चल रहा हो। इससे वसीयत योजना के तहत आपको अपनी मृत्यु के काफी पहले प्रॉपर्टी हस्तांतरण में सहूलियत होती है। अंत में यही कि लिविंग ट्रस्ट से यह सुनिश्चित होता है कि आपको अपनी वसीयत योजना से आर्थिक नुकसान न हो क्योंकि आप जीवनकाल में ही अपनी प्रॉपर्टी को उत्तराधिकारियों में बांट देते हैं और वह भी तत्काल प्रभावी हो जाता है। इस प्रकार से यह सिद्धांत आपकी प्रोपर्टी की सही दिशा और देख-रेख में उत्तराधिकारी को देने का व्यवस्था करता है। 

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