Monday, January 17, 2011

आप हमेशा याद रहेंगे चावला सर....!

(यह लेख सुशांत ने 5 जून 2008 को अपने ब्लाग आम्रपाली (amrapaali.blogspot.com) पर लिखा था। हाल ही में जब फेसबुक पर आईआईएमसी ग्रुप की सुगंधा स्वानी ने चावला सर पर एक लेख लिखने की इच्छा ज़ाहिर की तो सुशांत का लिखा लेख हमने उनके ब्लाग से ले लिया। सुशांत झा का ये लेख आईआईएमसी के चावला सर के प्यार और स्नेह को समर्पित है।  पेश-ए-नज्र है...- एडिटोरिअल टीम)

कोई अपना सा....हमारे अपने चावला सर ! 
ज़िंदगी में कुछ हसीन लम्हे होते हैं..जिसे शायद ही कोई भूलना चाहता हो। इसी तरह ज़िंदगी में आप कुछ ऐसे लोगों से भी मिलते हैं जिन्हे आप कभी नहीं भूलते। उनकी याद, तनाव भरे लम्हों में भी राहत देती है। चावला सर ऐसी ही शख्सियत हैं जो हमारे आईआईएमसी की पीढ़ियों को ताउम्र याद रहेंगे। मैंने एसआरसीसी के किसी प्रोफेसर के बारे में (अभी नाम भूल गया हूं) कहीं ऐसा ही पढ़ा था जिनका शौक है कि वे खाली वक्त में अपने लैपटॉप पर कॉलेज के पार्क में बच्चों का सीवी टाईप करते हैं। चावला सर भारतीय जनसंचार संस्थान के उन कर्मचारियों की नुमांइदगी करते हैं जिनके लिए संस्थान ही सब कुछ है...और छात्र बिल्कुल अपने बच्चे सरीखे। जब मैंने आईआईएमसी में दाखिला लिया था तो पहली बार चावला सर से डाक्यूमेंट जमा करवाते वक्त मुलाकात हुई। अंदर एक हिचक थी जो चावला सर से पहली ही बातचीत में छू-मंतर हो गई।


धीरे-धीरे चावला सर का मतलब एक आश्वासन होता गया। इस महानगर में हज़ारों किलोमीटर दूर से आए हुए बच्चों के लिए वो पहले ही दिन अपने हो गए। बैंक में एकांउट खुलवाना हो या कोई डाक्यूमेंट अटेस्ट करवाना..चावला सर हर मर्ज़ की दवा थे। उन्हे ये भी चिंता रहती थी कि उत्तर बिहार में बाढ़ की वजह से डाक वक्त पर नहीं पहुंच पाएगी और बच्चे दाखिला लेने से वंचित रह जाएंगे। बस चावला सर दिनरात फोन पर चिपके रहते..और एक-एक कर सारे बच्चों को फोन पर बता कर ही दम लेते। चावला सर की शख्सियत का बखान करने के लिए शव्द कम पड़ जाते हैं। आज संस्थान से निकलने के तीन साल बाद जब पीछे मुड़ कर देखता हूं तो ये कहना मुश्किल है कि खुशी के उन लम्हों में किसका योगदान ज़्यादा था। चावला सर, प्रोफेसरों से कतई कम नहीं थे। चावला सर तो हमें ये भी बताते थे कि नौकरी की संभावना कहां ज्यादा है और हमें किससे संपर्क करना चाहिए।

चावला सर के पास अक्सर पासआउट हुए लड़कों के शादी का कार्ड पड़े रहते। वो मास कॉम के कई जोड़ो की शादी के गवाह थे। कई लड़के-लड़कियां उन्हें अपना हमराज़ बना लेते। मुझे वो लम्हा याद है जब करीब तीन साल पहले एल्यूमिनाई मीट में दीपक चौरसिया ने चावला सर को शॉल पहना कर सम्मानित किया था। मज़े की बात ये थी कि दीपक अपने व्यस्त प्रोग्राम में से सिर्फ चावला सर के कहने पर ही संस्थान में बरसों बाद आए थे। राजीव ने पिछले दिनों फोन पर बताया कि चावला सर का फोन आया था और वो उसका हालचाल पूछ रहे थे। बाद में चावला सर ने मिलने के लिए भी बुलाया था। सच कहूं तो मैं जलभुन गया था कि चावला सर ने सिर्फ उसे ही क्यों फोन किया...ये बात कुछ ऐसी ही है जैसे दो बच्चे अपने मां-बाप का प्यार पाने के लिए लड़ते हैं। राजीव के पिताजी उस दिन आईआईएमसी गए थे तो चावला सर के साथ बड़े अपनेपन के माहौल में चाय-ठन्डे का दौर चला था।

चावला सर ने कहा था कि मेरी नौकरी के अभी 18 साल बाकी है..तुम लोग अपने कागजात के लिए 18 साल तक मुझ पर भरोसा कर सकते हो। दरअसल चावला सर वन मैन आर्मी थे। आईआईएमसी के प्रशासनिक विभाग का मतलब ही हमारे लिए चावला सर थे।


आईआईएमसी के दिनों में मुझे गुटखा खाने की आदत पड़ गई थी और हमारे सेमेस्टर के इम्तिहान चल रहे थे। मिनी ऑडिटोरियम में हमें बैठाया गया था। आईआईआईएमसी का ऑडिटोरियम जिसे मंच कहा जाता है, वो तो भव्य है ही, मिनी ऑडिटोरियम भी काफी बड़ा है। मैंने गुटखा चुपके से उसकी कालीन पर थूक दिया। मैं पीछे वाली कतार में था। मास कॉम का एक और वफादार स्टाफ था गोपाल..(पता नहीं वो अभी हैं भी कि नहीं...गोपाल नेपाल के रहने वाले थे और संस्थान के केयर टेकर भी... संस्थान की सारी खूबसूरती, साफ सफाई और सैकड़ो तरह के फूल उनकी बदौलत ही हैं) किसी तरह गोपाल को इस बात की भनक लग गई और वह वहां पहुंच गए। मैंने आनन-फानन अपने रोल नंबर की पर्ची उस जगह से हटाई और दूसरी जगह पर बैठ गया। गोपाल ने चावला सर को बुला लिया। चावला सर ने बड़े प्यार से हमें समझाया कि बेटे ये संस्थान आपका ही है...और आपके ही टैक्स से इसका खर्च चलता है। यहां विदेशी भी आते हैं..वे क्या कहेंगे। इस घटना से मुझे इतनी ग्लानि हुई कि मैंने गुटखा खाना छोड़ दिया (ये अलग बात है कि मुई आदत फिर से दबे पांव वापस आ गई और बहुत हाल में एक लड़की के कहने पर छूटी है)..

इस तरह चावला सर की न जाने कितनी ही यादें हैं..जिनका तफसील में जिक्र शायद ब्लाग जैसे मीडियम को रास नहीं आएगा। चावला सर का पूरा नाम मैं आज भी नहीं जानता...और शायद उनका व्यक्तित्व किसी नाम का मोहताज भी नहीं... चावला सर जैसे लोग उन घड़ियों में और भी याद आते हैं...जब हम ‘मेंटल अलूफनेस’ से संघर्ष कर रहे होते हैं....यहां भी हमें ये किसी तकलीफ से बच निकलने में मदद करते हैं....क्योकि चावला सर हमारी यादों में पूरे आवेग से आते हैं ...हल्का अहसास कराते हैं....हालात में अकेले फंसे पा हमारे दिमाग का अचेतन हिस्सा उन्हे खोजते हुए आईआईएमसी पहुंच ही जाता है.....और फिर सामने सिर्फ चावला सर खड़े होते हैं...!

10 comments:

  1. sahi kaha dost maine bhi aaj tak itna devoted sarkari mulazim nahi dekha....

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  2. चावला सर और गोपाल जी जैसों की वजह से आईआईएमसी की एक अलहदा पहचान है, वरना एक संस्थान को सरकारी महकमे में तब्दील होने में लगता ही क्या है..चावला सर को हमारा आदर।

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  3. bilkul sahi kaha . chawla sir ko iimc ka koi student nahi bhool sakta. He was like local guardian for the students who came from different cities. He still is ...... mona

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  4. धन्यवाद प्रणीव और इस ब्लॉग के अन्य संपादकीय सहयोगी दोस्त। मेरे लेख को आपने दो साल के बाद फिर से इस फोरम पर जगह दिया, इसका मैं आभारी हूं। आपलोग बढ़िया काम कर रहे हैं। मेरी शुभकामनाएं।

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  5. चावला सर...एक बेहतरीन इंसान...सुशांत तुमने सबके दिल की बात कही है...बहुत बढ़िया...

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  6. bilkul sahi kaha mujhe to bus chawla sir ke liye hi adar bakion ko to main....

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  7. one man army is the most appropriate word for Chawla sir. He is the one who at IIMC makes your stay convenient. When you leave your hometown for the first time in life and enter Delhi...it treats you like a step-mother...but Chawla sir made it sure that students feel better as much as possible...our deep and sincere love for our own Chawla sir :-)

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  8. आप लोगों का लेख पढ़ कर खुद पर फक्र हो रहा है कि अब हम आपकी विरासत को सँभालने जा रहे हैं....

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