Monday, January 10, 2011

....तब सो पाएंगे आप शांति से

धीरज वशिष्ठ
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र, योग इंस्ट्रक्टर और स्वतंत्र पत्रकार हैं)
एक छोटी बच्ची अपने हमउम्र लड़के के साथ खेल रही थी। उस लड़के के पास कंचे का एक अच्छा कलेक्शन था, जबकि लड़की के पास कुछ मिठाइयां। लड़के ने उस लड़की से कहा कि मैं तुम्हें अपने सारे कंचे दे दूंगा, अगर तुम अपनी सारी मिठाइयां मुझे दे दो। लड़की राज़ी हो गई और अपनी सारी मिठाइयां दे दीं। मिठाई के बदले लड़के ने अपने कंचे के कलेक्शन से कुछ बड़े और सुंदर कंचे छोड़कर बाकी सभी कंचे लड़की को दे दिए। उस रात लड़की शांति से सोई, लेकिन लड़का सो न पाया। पूरी रात करवटों में गुज़र गई। ये सोच कर लड़के की नींद उड़ी रही कि कहीं उसकी तरह लड़की ने भी सबसे स्वादिष्ट और लाजवाब मिठाइयां अपने पास छुपा न रखीं हो।
ये कहानी मुझे बहुत प्रीतिकर लगती है। ये छोटी-सी कहानी हमारे चरित्र की कहानी या कहें तो हम अपनी जिंदगी को कैसे जीते हैं, इसकी कहानी कहती है। इस कहानी को समझ सकें तो इसमें पूरी गीता समा जाए। इस कहानी के सार में अब तक मानवता के दिए गए तमाम उपदेश समा जाएं।
कहानी कहती है कि उस रात वो लड़की शांति से सो पाई। ये शांति कुछ बांटने की शांति है। ये शांति उस मानसिकता से आती है, जहां चीज़ें सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे लिए नहीं होतीं, उस पर सिर्फ़ हमारा अधिकार होने का दंभ नहीं होता। हम जब किसी को कुछ देते हैं तो हमारा ह्रदय खिल उठता है। अपनी ज़िंदगी में आपने कई बार इसे महसूस किया होगा। याद कीजिए उस वक्त को जब आप किसी के मददगार बन गए थे। उस छोटी-सी मदद के बदले भले ही आपको कुछ न मिला हो, लेकिन उस दिन आपने ख़ुद को काफी हल्का महसूस किया होगा । ये देने का आनंद है, ये किसी को मदद पहुंचाने की खुशबू है, ये किसी के काम आने की शांति है।
कहानी कहती है कि उस रात लड़का सो नहीं पाया, रात भर करवटें बदलता रहा। हालांकि लड़के के पास उसके शानदार कंचे भी रह गए और लड़की की सारी मिठाइयां भी आ गई, लेकिन चैन न था, बेचैनी सोने नहीं दे रही थी। ये बेचैनी आती है बेईमानी से। सबकुछ हड़प कर जाने की मानसिकता हमें सोने नहीं देती, चैन की सांस लेने नहीं देती। जहां उस लड़की का ह्रदय-कमल खिल उठा, वहीं कुछ शानदार कंचे दबाकर उस लड़के ने अपने ह्रदय को सिकोड़ लिया । इस सिकुड़े ह्रदय ने उस लड़के को रात भर परेशान किए रखा।
हम जिंदगी भर इस छोटे बच्चे की तरह चालबाज़ियों में फंसे रहते हैं। सबकुछ पा लेने की छटपटाहट ने हमसे शांति छीन ली है। दुनिया में जो कुछ बेहतर है, जो चीज़ें अच्छी है, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे पास हो- इस मानसिकता ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है। हमारे पास सबकुछ होते हुए भी हम सबसे दरिद्र हो गए हैं, हम सबसे दीन-हीन मालूम पड़ते हैं, हम सबसे भिखमंगे नज़र आते हैं।
ये कहानी ये भी कहती है कि हम संबंधों को लेकर भी कितने बेईमान हैं। कभी कुछ कंचे, कभी कुछ पैसे तो कभी कुछ पद को लेकर हम उन संबंधों से भी दग़ा कर जाते हैं, जिसके होने से हमारा होना है। चंद पैसों के ख़ातिर एक भाई अपने भाई का ही गला घोंट देता है। कुछ टुकड़े ज़मीन की ख़ातिर एक बेटा अपने पिता का ही हत्यारा बन जाता है। थोड़ी सी कामयाबी की ख़ातिर एक दोस्त दूसरे दोस्त को दग़ा दे जाता है, एक दूसरे की क़ब्र खोदने लगता है। आख़िर हम कहां जा रहे हैं ?
Recent Posts

1 comment:

  1. "किसी को मदद पहुंचाने की खुशबू है, किसी के काम आने की शांति है।"
    yitna achha bichar hai apke tyo ap khud kitne achhay honge. Haa, agar har koi a sab samaj pata tyo desh ki ashanti khatam hoti...khud ke ashanti khatam hoti..log samajka andekha karte hai.......paise aur jhuta fame ke liye. Love to read ur articles..inspiring.

    ReplyDelete