विवेक आनंद |
(लेखक आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं)
मेरी प्यारी चवन्नी...सरकार ने तुम्हें गैरज़रूरी मान लिया है। कुछ महीनों बाद तुम सिर्फ यादों में रह जाओगी। किसी संग्रहालय की सुनहरे कब्र में दफना दी जाओगी। लोग आएंगे और तुम्हें याद करेंगे कि कैसे-किसी वक्त तुम्हारी भी हुकूमत चलती थी। तुम्हारी कीमत इतनी थी कि राजा लोग भी दिल मांगने के लिए तुम्हें उछालते थे। तुम्हारी जवानी वाले उन दिनों के बारे में मुझे हाल ही में पता चला, जब मैंने वो गाना सुना कि ‘राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के’...कैसा सुनहरा वक्त रहा होगा वो। जब तुम्हारे बदले दिल का सौदा किया जाता रहा होगा। एकबारगी अपनी हथेलियों पर तुम्हारे नर्म स्पर्श की याद ताजा हो आई। बड़े बुजुर्गो से भी सुना था तुम्हारे यौवन के दिनों के बारे में, जब तुम्हारे बदले में एक सेर घी मिला करता था और एक थान कपड़ा भी मिल जाता था। दादी अपने कितने ही किस्सों में तुम्हारा जिक्र करती थीं। कैसी चमक आ जाती थी उनके चेहरे पर। जब भी वो तुम्हारे बारे में बतातीं... तुम्हारी ढलती उम्र की बड़ी फिक्र थी उन्हें। और मैं तो बस उनकी बातें हैरत से सुना करता था। सोचा करता...अच्छा... तुम कभी इतनी भी जवान थीं।
अब यादों में रह जाएगी चवन्नी |
बचपन की कितनी ही यादें तुम्हारे साथ जुड़ी हैं। तुम मेरे पास रहो या ना रहो, तुम्हारी वो यादें तो हमेशा ही मेरे साथ रहेंगी। दादी कहती थीं कि बचपन से ही मैं तुम्हारे मोहपाश में बंधा था। तुम्हारा सुनहरा रंग मुझे बहुत पसंद था। उस वक्त मुझे कहां समझ थी कि मैं तुम्हारा मोल समझ पाता। दादी की हथेलियों पर 10-20 पैसों के बीच तुम शरमाई से पड़ी रहती...और मैं तुम्हें झट से उठा लेता... तुम्हारे स्नेह बंधन में ऐसा बंधा था कि दादी को डर लगा रहता... कि मैं तुम्हें निगल ना लूं।
जब तुम्हारा मोल समझने की उम्र हुई, तब भी तुम मेरे सबसे करीब थी। मैं तो इतने भर में खुश रहता था कि तुम मुझे पांच खट्ठी-मीठी गोलियां दे जाती हो। तुम्हारे बदले मुझे सुनहरे रैपर वाली एक बड़ी टॉफी मिल जाती है, जो उस वक्त बड़ी मुश्किल से पूरे मुंह में आ पाती थी। वो खट्टा-मीठा चूरन मुझे कितना पसंद था। एक पूरा का पूरा पैकेट तुम दे जाती थी। कितने प्यारे दिन थे वो तुम्हारे... और मेरे भी। स्कूल के गेट एक बूढ़े बाबा बैठा करते थे। अपनी टोकरी में ताज़े खीरे-ककड़ी और कागजी नींबू लेकर। मैं अक्सर तुम्हारे बदले में खीरा या ककड़ी लेता था। रिक्शे पर बैठकर स्कूल से घर की पांच किलोमीटर की दूरी तय करता था। अपनी बहनों के साथ रास्ते भर में भी सारे खीरे औऱ ककड़ी खत्म नहीं कर पाता था। जेबखर्च में मम्मी तुम्हें ही दिया करती थीं और मुझे तुमसे ज्यादा कुछ चाहिए भी नहीं था। क्या-क्या याद करूं तुम्हारे बारे में। अपने पेंसिल बॉक्स में कितना सहेज कर रखता था तुम्हें...और मेरी गुल्लक में तो सिर्फ तुम ही रहती थी।
जैसे-जैसे बड़ा होता गया, दुनियादारी की समझ मुझमें भी ठूसी गई। तुम्हारी ढलती उम्र की मुझे बार बार याद दिलाई गई। अब मैं भी मम्मी से जिद करने लगा था, बोलता- अब तुममें वो बात नहीं रह गई थी...मेरी हथेलियां भी तो बड़ी हो गईं थीं और जरूरतें भी लेकिन कभी भी बचपन के तुम्हारे साथ को नहीं भूल पाया...अभी तक याद है। सच्ची!
कभी खूब जलवा था चवन्नी (25 पैसे) का |
लोग तुम्हें भूलने लगे थे। तुम्हें मुहावरों में गढ़ा जाने लगा था। एक दिन किसी दोस्त ने कहा, बड़ी चवन्नी मुस्कान ले रहे हो। चवन्नी मुस्कान का मतलब समझा तो अच्छा लगा। चलो किसी न किसी बहाने तो तुम्हें याद किया जा रहा था अब। मेरी मुस्कान में भी तुम थी लेकिन उस वक्त मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जब मैंने ये जाना कि लोग कमतर चीजों को चवन्नी छाप कहने लगे हैं। चवन्नी छाप लड़का...चवन्नी छाप फलां...चवन्नी छाप फलां। आज सुबह ही तो एफएम रेडियो पर सुन रहा था. "ये क्या मेड के आने पर तुम्हारी चवन्नियां ज़मीन पर गिरने लगती हैं।" लोग तुम्हें हिकारत की नजरों से देखने लगे थे। लोगों के लिए धीरे-धीरे तुम गैरज़रूरी होती जा रही थी। बाजार में तुम्हारी कोई साख नहीं रह गई थी।
अभी कुछ दिन पहले ही तुम कहीं से अचानक मेरी जेब में आ गई थी। मैंने तुम्हे बड़े गौर से देखा और सहेज कर रख लिया। अब तुम हमेशा मेरे पास रहोगी चवन्नी। धीरे धीरे लोग तुम्हें भूल जाएंगे लेकिन मैं तुम्हें कहां भूल पाऊंगा। कहां भूल पाया उन खट्टी-मीठी गोलियों का स्वाद, चटपटे चूरन का मज़ा, कहां भूल पाया उस बूढ़े बाबा की वो आवाज.जो मेरी गली में आवाज लगाया करते थे, चार आने का आइसक्रीम। आई लव यू चवन्नी.... :-(